अहिंसा की टेर पर,
अहिंसा की टेर पर,
अहिंसा की टेर पर, लाठी के टेक पर।
देश आजाद हुआ, वीर शहीदों के जोर पर।
कितने वीर शहीद हुए, धरती मां के पूत हुए।
भगत सिंह नहीं अकेले थे, कई जवान कुर्बान हुए।
याद शहीदों की हमने दफनाई, कितनी लाशों पर चलकर आजादी पाई।
अहिंसा की टेर पर.....
दाग गुलामी के उनके लहू से मिटे, आजादी की कीमत हमने है चुकाई,
कितने तोपों के मुंह के आगे खड़े,
कितनों ने गले फंदे चूमे।
कितने जलियांवाला बाग जले, तो कितने गोलियों से छलनी हुए ।
औरतों की यहां टूटी चूड़ियां,
सतीत्व भी खतरे में आ गया।
अहिंसा की टेर पर....
कांटों के पथ पर चल,
धरती मां का सतीत्व बचा लिया।
गांधी चले एक नारा लेकर,
धोती का सहारा लेकर।
अंग्रेजों को चने चबवायेंगे
देश से खदेड़ भगायेंगे।
धरती मां के लाल कांटों पर सो, हमें चैन से घरों में सुलाएंगे।
अहिंसा की टेर पर.....
न्योछावर करते अपना तन मन, हर पल डट तैयार रहेंगे।
हिंदुस्तान के गुलशन के सुंदर फूल थे वो,
भारत की रक्षा में मशगूल थे वो।
आजादी यूं ही नहीं मिली,
स्वयं मिटकर दिखलाया है।
युद्ध के मैदान में कमाल अपना, मिट्टी में मिल कर दिखाया है।
अहिंसा की टेर पर...
शुरू हुई सन सत्तावन में, उन्नीस सो सैंतालीस तक रही।
कितने वीरों का रक्त बहा, कितनी अबलाओं की आह मिली।
धरती उन वीर शहीदों की, खून की जिनके नदियां बही।
शत-शत नमन धरती के वीरों को,
सरहद पर डटे पहरेदार अभी।
अहिंसा की टेर पर....