रक्षाबंधन
रक्षाबंधन
खुशियों की सौगात लेकर,
बहन राखी सजा कर आई।
खिल गई बहारें बहन जब,
रेशम की डोर सजा आई।
बहुत याद आते हो भाई,
बहन भावुक हो गले लगाई।
जाने कितने अलंकृतों से,
राखी है बहना ने सजाई।
जब भी मिलते हो तुम भाई,
स्नेहल छत्र छाया दे जाते।
आकांक्षा, अभिलाषा पूर्ण हो,
आंचल उपहारों से भर जाता।
बचपन के प्रेम का धागा,
अपार स्नेह दिखलाता।
कच्ची रेशम की डोर से बंधा,
प्यार खींचा चला आता।
पितृ तुल्य प्यार तुम्हारा,
रक्षा कवच बन जाता।
रक्षा सूत्र बांध तुम्हें,
दिल निश्चिंत हो जाता।
तपती धूप में स्पर्श तुम्हारा,
शीतल छांव चमन दे जाता।
घनघोर अंधेरा हो तब भी,
आलिंगन तुम्हारा ढ़ाढ़स दे जाता।
एक दूजे की गलतियों को,
हम दोनों ही संभालते।
नादानियां एक दूसरे की,
माँ की डांट से बचा जाते।
भाई बहन दोनों ही,
प्यारी रेशम की डोर से बंधे।
बचपन की यादें,
सावन मास में उभरे।
