साक्षी मैं
साक्षी मैं
अपना बचपन, जवानी देखी
ये जीवन एक कहानी देखी
बुढ़ापा अब दस्तक दे रहा
हसरतें होती सयानी देखीं ।
बच्चों की तुतलि वाणी देखी
जवानी उनकी दीवानी देखी
समय के साथ में वो बड़े हुए
चीजें होतीं पुरानी देखीं ।
टॉप करने की ठानी, देखी
आशाएँ बचकानी देखी
और सफल ना हो पाने पर
निराशा और परेशानी देखी ।
सकल भीड़ अज्ञानी देखी
बच्चों की मौज सुहानी देखी
हँसी गूंज रही तंग गलियों में
रोते राजा, रानी देखी ।
झूठों की होती मेहमानी देखी
चोरों की बेईमानी देखी
दम घुट रहा सत्य का यहाँ
सच्चे की बात ना मानी देखी ।
ग़ैरों की बदज़ुबानी देखी
अपनों की मेहरबानी देखी
दुश्मन जब आए सामने
शक्लें जानी पहचानी देखीं ।
गुजरी पीढ़ी स्वाभिमानी देखी
नई पीढ़ी थोड़ी अभिमानी देखी
परंतु जो माँ, हर पीढ़ी की
वो तो बस बलिदानी देखी ।
समय की दौड़ अनजानी देखीं
दौड़ती हुई ज़िंदगानी देखी
और जब महामारी आइ
चारों तरफ़ वीरानी देखी ।
हिमालय की चोटी आसमानी देखी
कहीं धरती रेगिस्तानी देखी
उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम
संस्कृति हिंदुस्तानी देखी ।
जीवन की रवानी देखी
समय की बलवानी देखी
चक्र देखा जन्म- मृत्यु का
दुनिया है ये फानी देखी ।