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Ajay Singla

Classics

4  

Ajay Singla

Classics

साक्षी मैं

साक्षी मैं

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अपना बचपन, जवानी देखी 

ये जीवन एक कहानी देखी 

बुढ़ापा अब दस्तक दे रहा 

हसरतें होती सयानी देखीं ।


बच्चों की तुतलि वाणी देखी 

जवानी उनकी दीवानी देखी 

समय के साथ में वो बड़े हुए 

चीजें होतीं पुरानी देखीं ।


टॉप करने की ठानी, देखी 

आशाएँ बचकानी देखी 

और सफल ना हो पाने पर 

निराशा और परेशानी देखी ।


सकल भीड़ अज्ञानी देखी 

बच्चों की मौज सुहानी देखी 

हँसी गूंज रही तंग गलियों में 

रोते राजा, रानी देखी ।


झूठों की होती मेहमानी देखी 

चोरों की बेईमानी देखी

दम घुट रहा सत्य का यहाँ 

सच्चे की बात ना मानी देखी ।


ग़ैरों की बदज़ुबानी देखी 

अपनों की मेहरबानी देखी 

दुश्मन जब आए सामने 

शक्लें जानी पहचानी देखीं ।


गुजरी पीढ़ी स्वाभिमानी देखी 

नई पीढ़ी थोड़ी अभिमानी देखी 

परंतु जो माँ, हर पीढ़ी की 

वो तो बस बलिदानी देखी ।


समय की दौड़ अनजानी देखीं

दौड़ती हुई ज़िंदगानी देखी 

और जब महामारी आइ

चारों तरफ़ वीरानी देखी ।


हिमालय की चोटी आसमानी देखी 

कहीं धरती रेगिस्तानी देखी 

उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम 

संस्कृति हिंदुस्तानी देखी ।


जीवन की रवानी देखी 

समय की बलवानी देखी 

चक्र देखा जन्म- मृत्यु का 

दुनिया है ये फानी देखी ।


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