Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Ajay Singla

Classics

5  

Ajay Singla

Classics

श्रीमद्भागवत -१६१; आगामी सात मन्वन्तरों का वर्णन

श्रीमद्भागवत -१६१; आगामी सात मन्वन्तरों का वर्णन

3 mins
380



श्री शुकदेव जी कहें, हे परीक्षित

सातवें वैवस्वत मनु हैं

श्राद्धदेव, पुत्र विवस्वान के

वर्तमान मन्वन्तर उनका कार्यकाल है।


वैवस्वत मनु के दस पुत्र हैं

इक्ष्वाकु, नभग, धृष्ट, शर्याति

वरिष्यन्त, नाभाग, दिष्ट, करूष 

पृषध्र और वसुमान, ये सभी।


आदित्य, वसु, रूद्र, विशवदेव 

मरुद्गण, अश्वनीकुमार, ऋभु ये

इस मन्वन्तर में ये सभी

प्रधान गण हैं देवताओं के।


पुरंदर इनका इंद्र है

कश्यप, वशिष्ठ, गौतम, अत्रि

विश्वामित्र, जमदाग्नि, भरद्वाज  

ये सब हैं इसके सप्तरिषि।


अवतार ग्रहण किया विष्णु ने

कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से

आदित्यों के छोटे भाई

भगवान् वामन के रूप में।


हे परीक्षित अब मैं कथा वर्णन करूं

आगे के सात मन्वन्तरों की 

संज्ञा, छाया सूर्य की पत्नियां

विशवकर्मा की वो पुत्रियां थीं।


तीन संतानें हुईं संज्ञा को

यम, यमी और श्राद्धदेव जी

 सावर्णि, शनैश्चर और कन्या तप्ती

तीन संतानें छाया की भी।


तप्ती संवरण की पत्नी हुई

और संज्ञा से अश्वनीकुमार भी हुए

जब धारण कर लिया था

बड़वा का रूप, संज्ञा ने।


आठवें मन्वन्तर में सावर्णि मनु होंगे

होम, निर्मोक , विरजसक आदि उनके पुत्र होंगे

सुतन, विरजा और अमृतप्रभ 

उस समय प्रधान देवगण होंगे।


इन देवताओं के इंद्र

होंगे तब विरोचनपुत्र बलि

भगवान् ने वामन अवतार ले

तीन पग पृथ्वी इन्हीं से ली थी।


एक बार तो बाँध लिया था

भगवान् ने राजा बलि को

परन्तु फिर प्रसन्न हो उनपर

सुतल लोक दे दिया था उनको।


स्वर्ग से भी श्रेष्ठ ये लोक है

समस्त ऐश्वर्यों से परिपूर्ण लोक ये

इस समय वहां विराजमान बलि 

आगे चल कर ये ही इंद्र होंगे।


इंद्र पद का परित्याग कर

परम सिद्धि प्राप्त करेंगे

परशुराम,कृपाचार्य, व्यास आदि  

उस मन्वन्तर के सप्तऋषि होंगे।


इस समय ये लोग योगबल से

स्थित हैं अपने अपने आश्रम में

सार्वभौम भगवान् का अवतार होगा

देवगुह्या की पत्नी सरस्वती से।


ये प्रभु ही पुरंदर इंद्र का

राज्य छीन देंगे बलि को 

नवें मनु दक्ष सावर्णि होंगे

भगवान् वरुण के पुत्र वो।

  

 भूतकेतु, दीप्तकेतु आदि उनके पुत्र

पार, मरिचिगर्भ आदि देवताओं के गण

इंद्र होंगे अद्भुत नाम के

द्युतिमान आदि सप्तरिषि होंगे।


आयुष्मान की पत्नी अम्बुधारा से

भगवान् आएंगे ऋषभ रूप में

अद्भुत नामक इंद्र उन्ही की

दी हुई त्रिलोकी का उपभोग करेंगे।


उपश्लोक के पुत्र ब्रह्मसावर्षी 

मनु होंगे दसवें मन्वन्तर के

समस्त सद्गुण निवास करेंगे उनमें

भूरिषेण आदि पुत्र उनके।


हविषमान, मुकृति, सत्य,.जय, मूर्ती 

आदि सपतऋषि इस मन्वन्तर के 

सुवासन, विरुद्ध आदि देवताओं के गण 

और शम्भू इंद्र होंगे इसके।


विशवसृज की पत्नी विषूचि से 

भगवान् विष्वक्सेन के रूप में 

अंशावतार ग्रहण करके वे 

 मित्रता करेंगे इंद्र से।


ग्यारहवें मनु होंगे धर्मसावर्णि 

सत्य, धर्म आदि दस पुत्र होंगे उनके 

 विहंगम, कामगम, निर्वाणरुचि आदि 

गण होंगे देवताओं के।


सपतऋषि होंगे अरुणादि 

इंद्र होंगे वैधृत नाम के 

भगवान् धर्मसेन के रूप में जन्में 

आर्यक की पत्नी वैधृता के गर्भ से।


रूद्रसावर्णि होंगें बारहवें मनु 

 देववान, उपदेव आदि पुत्र उनके 

इंद्र ऋतधामा नामक और 

हरित आदि देवगण होंगें।


त्योमूर्तो, तपस्वी, अग्निध्रक आदि 

होंगे सप्तऋषि इस मन्वन्तर के 

सत्यसहा की पत्नी सूनृता से 

स्वधाम रूप में भगवान् अवतार लें।


तेरहवें मनु होंगे देवसावर्णि 

पुत्र चित्रसेन, विचित्र आदि उनके 

 सुकर्म और सुत्राम आदि देवगण 

 दिवस्पति नाम के इंद्र होंगे।

 

 निर्मोक और तत्वदर्श आदि सप्तऋषि 

और देवहोत्र की पत्नी बृहती से 

अंशावतार होगा भगवान् का 

 योगेश्वर के रूप में।


चौदहवें मनु इंद्रसावर्णि होंगे 

 उरु, गंभीरबुद्धि होंगे पुत्र उनके 

देवगण होंगे पवित्र, चाक्षुक  

शुचि नाम के इंद्र होंगे।


 अग्नि, बहु, शुचि, शुद्ध और मागध 

सप्तऋषि होंगे उस मन्वन्तर में 

भगवान् वृहद्भान के रूप में 

अवतार लेंगे सत्रयाण की पत्नी विताना से।


हे परक्षित,ये चौदह मन्वन्तर 

चलते रहते भूत, वर्तमान, भविष्य में 

एक सहस्त्र चतुर्युगी वाले कलप के 

समय की गणना की जाती इन्ही से | 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics