ये कहाँ आ गए हम
ये कहाँ आ गए हम
चीखते मकान
बिखरा सड़कों पर
मशहूूर दुकान
ये कहाँ आ गए हम।।
बंद ऑंख और कान
भक्षक बन
सोए रक्षक
लंबी ईक चादर तान
ये कहाँ आ गए हम।।
गुम खुशी
जग वीरान
सारे राक्षस
नही कोई इंसान
ये कहाँ आ गए हम।।
हूॅूँ हैरान
अंंतःमन है परेशान
गााँधी ! गााँधी !
तुम्हारे सपने में था
क्या यही हिन्दुस्तान,
ये कहाँ आ गए हम।