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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics Others

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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics Others

ये कहाँ आ गए हम

ये कहाँ आ गए हम

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चीखते मकान

बिखरा सड़कों पर

मशहूूर दुकान

ये कहाँ आ गए हम।।


बंद ऑंख और कान 

भक्षक बन

सोए रक्षक

लंबी ईक चादर तान

ये कहाँ आ गए हम।।


गुम खुशी

जग वीरान

सारे राक्षस

नही कोई इंसान 

ये कहाँ आ गए हम।।


 हूॅूँ हैरान

 अंंतःमन है परेशान 

 गााँधी ! गााँधी !

 तुम्हारे सपने में था

 क्या यही हिन्दुस्तान, 

ये कहाँ आ गए हम।


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