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Dr Reet Rao

Abstract

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Dr Reet Rao

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पुरुष

पुरुष

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हर बार उस मर्द ने दिल पे

कितना दर्द पाया है। 

पर जब भी गलती से किसी स्त्री

पर हाथ उठाया तो बेदर्द कहलाया है।


 गलत दोनों ही होते हैं हर वक्त,

मगर इल्जाम सिर्फ क्यूं

अकेले पुरुष पर आया है।


हर वक़्त करता है वो पूरी

ख्वाहिशें सबकी उतनी बढती

जाती पल-पल फरमाइशें सबकी।

 वो बेटा भाई पति और बाप

बन तो जाते हैं पर एक छत के नीचे

हर एक से धीरे धीरे जुदा हो जाते है।


बचपन से जवानी तक तो

बहुत सबल होते है वो। 

पर विवाह कर वहीं

उलझ कर रह जाते है वो।


अब फैसला करो की कमजोर,

लाचार और बेबस यहां कौन है।

 देखो खुद्दारी से बोलने वाला मर्द

आज सबके सामने बैठा मौन है।


थक कर आता सांझ को

कोने में बैठ जाता है।

 हर वक़्त सब उसको सुनाते

अपनी तो वो कह भी नहीं पाता है।


हर रोज बरसता है

उस पर एक ही तराना।

कभी मां बीवी की तो कभी

बीवी देती है मां बाप का ताना, 


किसी का बेटा पति बाप बनकर

हर एक फर्ज निभाता है वो।। 

श्रद्धा पूर्वक ममता दूध,

और सिंदूर का कर्ज चुकाता है वो। 


 बनकर बेटा और पति,

दोनों को सम्हालता है वो। 

फिर भी कभी माँ बाप के ताने तो कभी

पत्नी का शिकायत पाता है वो। 


पिता के रूप में वो हर पल

बच्चों का हौसला बना है।

देखो उस बिन कोई घर,

घर नहीं पक्षी का घोंसला बना है। 

जिम्मेदारी से उसको सबने ऐसे कसा है।


कमाता जाता है सबके लिए

खुद को भुला वो बैठा है। 

दर्द और आंसू को अपनी अपने

मर्दानगी के चोले में उसने हर पल ढका है। 


देख लो अब वो पुरुष बेचारा

खुलकर रो भी नहीं सका है। 

खुलकर रो भी नहीं सका है।


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