दिन की दुल्हन तो रात है
दिन की दुल्हन तो रात है
दिन की दुल्हन तो रात है
हर रात एक परीक्षा है
हर रात एक तपस्या है।।
हर रात एक कहानी है
हर रात कुछ कुछ दीवानी है
रात एक नशा
जिसको चढ़ा
वही तूफानी है
रात खालीपन का इलाज़ है
दिन की दुल्हन तो रात है ।।
रात को 'अंधकार'
समझता क्यों इंसान है?
रात को प्रणाम
क्यों नहीं करता है इंसान
दिन की उज्वलता
रात की गम्भीरता है
दोनों का प्रेम स्वभाव है
दोनों प्रभु की कृति अनुपम
बेजोड़ बेमिसाल है ।।
दिन अगर प्रेम है
तो, रात इंतजार है ।।
दिन अगर प्रेम है
तो रात इकरार है
दिन अगर इश्क़ है
तो रात इज़हार है
दिन की हसीन दुल्हन रात है
रात एक चमत्कार है
अरे! रात में भी बात है.
दिन की मुट्ठी खुलते ही
इंसा, क्या से क्या बन जाये?
अरे! रात न हो तो थकान
शरण कहां पर पावे
?
अरे! रात ही तो ताजगी से
हमको रोज जगाती है
रात ही तो सपनों की
हमराही बन जाती है।
रात ही तो अपनी परछाईं बन जाती है
रात का सम्मान
क्यों करता नहीं इंसान?
रात्रि नमस्कार
क्यों करता नहीं इंसान?
अरे! "अपने बुरे दिनों में रात
साथ- साथ जागी है।"
जब लोगों ने वीरां में छोड़ा तो
रात .. साथ, पैदल - पैदल भागाी है
''जब दिन धोके में डूबा
तो,रात ने ही सम्भाला
सारी दुनिया ने जब ठुकराया
तो रात ने गोद में सुलाया
तेरे हर दर्द को रात ने
अपने हृदय लगाके सहलाया
दिन अगर भूख है तो रात तरसती प्यास है
दिन अगर जंग है तो रात आर-पार है
दिन की हसीन दुल्हन तो रात है
''अपने खामोश आंसूओं को
सिर्फ़ रात ने ही तो देखा है
दिन अगर प्रकाश पिता
तो.... रात सलोनी सी माँ है। ''
रात को प्रणाम मेरा बारम्बार है।