जिंदगी की राहों में
जिंदगी की राहों में
ज़िन्दगी की राहों में
हम किसी से मिल गए
जिंदगी की राहों में
हम किसी से मिल गए
कोई रिश्ता था नही
फिर भी रिश्ते बन गए ।
ना थी मंज़िल की ख़बर
ना था अपना ही पता
उस नज़र के मिलते ही
रास्ते खुद ही बन गए ।
आज हूँ में बुलंदी पर
मुट्ठी में कायनात है
सब कुछ हासिल है मुझे
पर, वो नज़र कहीं खो गयी।
ऐसा लगता है मेरे मौला
ज़िस्म में ही रूह सो गयी।
जिंदगी की राहों में
हम किसी से मिल गए
कोई रिश्ता था नहीं फिर
भी रिश्ते बन गए।