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कवि कृष्णा सेन्दल तेजस्वी

Abstract

3.4  

कवि कृष्णा सेन्दल तेजस्वी

Abstract

कविता :- सैनिक

कविता :- सैनिक

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मैं राष्ट्र भक्त हुँ मैं जाति का आलोचक हूँ।

मैं सनातन धर्म का पुजारी अटल साधक हूँ।।


मैं समरांगण में रणभेरी से फिर विनाश करूँ।

मैं सूर्य की प्रतिछाया नव धवल उजास भरूँ।।


मैं मानव धर्म लिए सत्य मार्ग का पथिक बना।

श्रीरामकृष्ण गौतम नानक वचन प्रतीक बना।।


मैंने धर्म साथ लिए रण में विजय ध्वजा फहराई।

भारत माता को बेरि दल से लड़कर मुक्त कराई।।


मैंने संस्कारों की खानों से उचित संस्कार लिए।

मैंने शिवशंकर के जैसे लँकाभेदी के जहर पिए।।


मैंने अपनी सुरक्षा में दूसरे को कष्ट दिया नही।

मेरी मर्यादा मैनें आद्य प्रहार किसी पर किया नही।।


शपथ याद मुझे है अब तक रणभूमि के गाथा की।

रक्षा करने चल पड़ा हुँ भारत भाग्य विधाता की।।


 मैं महाराणा प्रताप चेतक चंचल मन का उदय भान।

मैं हर-जगह पर लड़ता रखता भारत भूमि का ध्यान।।


 मैंने कब माना कि मैं निमित मात्र उसका अधिकार हूं।

मैं तो जगत जननी भारत माता की अमर ललकार हूं।।


मैंने इस कोने से उस कोने पूरे भारत को सम्मान दिया।

 जब मैं लड़ता भूमि पर नही

ं मैंने कोई अपमान किया।।


 कब तक तुम को समझाऊँ मैं अमृत माटी की गाथा को।

 शत शत् नमन करना आता हुँ भारत भाग्य विधाता को।। 


इस भू की रचना करने ऋषि-मुनियों संतों ने जाप किया।

 अंग -अंग का अर्पण कर भारत भूमि पर संताप किया।।


मैंने निशा निराशा के बादल पर अक्षत फूल चढ़ाया है।।

कितनी ही माता बहनों ने निज हाथों से सिंदूर मिटाया है।।


यूं तो हम भी निकले हैं मातृभूमि की सेवा करने को।

बहना की राखीं सुनी है हम चले सर्वश्व अर्पण करने को।।


 जो मेरी संस्कृति का परिचायक में उसका उज्ज्वल भाल।

मैंने अमृत का किया पान में भारत माता का अमर लाल।।


नमस्ते सदा वात्सले भूमि मैं मन प्राणों से लड़ता हूँ।

तेरे अमृत दूध की शक्ति अरिदल की छाती पर चढ़ता हुँ।।


जब-जब भी रणभूमि में मां मुझको याद तेरी आई है।

कंठ सुख गया तो मैने शत्रु के शौणित से प्यास बुझाई है।।


दुनिया मुझको पुजे न चाह मेरी मेरा उपकार न रहे।

कि तेरा वैभव अमर रहे माँ हम दिन चार रहे न रहे।।


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