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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Others

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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Others

फ़ितरत तेरी।

फ़ितरत तेरी।

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मैं समझ न पाया

था शायद कुछ कुछ भरमाया

छीन हँसी तू हँस सकता है

जटिलता हो तो तू फँस सकता है

हर पल रही मत यही तेरी

शायद यही फ़ितरत थी तेरी।।

सुन सुनाता हूँ तुझे एक कहानी

है यह तेरी बुनी बड़ी जानी-मानी

थी एक बड़ी प्यारी सी रानी

उलझा न जाने किस गात में

छोड़ उसे जिसका न था कोई सानी

तू उलझा न पता किस बात में

वह उलझ अकेले रह गई 

शायद यही फ़ितरत थी तेरी।।

वह कथा जो बुनी जानी थी अब

खत्म करने में छोड़ी कसर तूने कब

व्यथा के संग छोड़ यूँ चल दिया

जबकि सब था तेरा ही किया

कर उस दिया को याद सुलगाई तूने जिसे

लौ वह जलती प्रदीप्त रहे हर पल

कर जतन जो कर सकता है

या नकार आगे बढ़ने की है फेरी

शायद यही फ़ितरत थी तेरी।।

            

                 

  



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