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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics Others

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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics Others

मेरे वतन। =======

मेरे वतन। =======

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वतन मेरे वतन
करी बङी जतन
तब बना तुझे अपना पाया
जली अनंत काया
सजाया संवारा उन्होंने तुम्हें 
वतन मेरे वतन।।
उस आंधी के संग चल पड़े 
लाठियां पड़ी रहे अड़े
थी स्वराज्य के ख्वाब 
आंखों में सजाया उन्होंने 
बड़े जतन से बसाया उन्होंने तुम्हें 
वतन मेरे वतन।।
गोरों का गजब झमेला 
सच हमने क्या क्या न झेला
जलियांवाला बाग कहां हैं भूले
जहां खून की होली खेला
कर न्योछावर मन और तन सजाया उन्होंने तुम्हें 
वतन मेरे वतन।।
आज अपनी है बारी
गति, निति, रिवाज, विकास 
इन संग तय कर दी अपनी यारी
जो मिला नये किस्से हैं उनमें जोड़ने 
यही तो करने सौंपा हमें उन्होंने तुम्हें 
वतन मेरे वतन।।
             ✍️ राजीव जिया कुमार,
                  सासाराम, रोहतास, बिहार।






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