क्या खोया क्या पाया ?
क्या खोया क्या पाया ?
क्या खोया, क्या पाया जीवन में,
खुशी के पल, या गम के साये में।
विश्वासी डोर कभी टूटे कभी जुड़े,
स्नेहाग्नि कभी भड़के, कभी बुझे।
दोस्ती के बंधन, कभी हों मजबूत,
कभी कमजोर दिली तार हैं सबूत।
परिवार संग ,कभी हंसी कभी तूफां,
जीवन की राहों में, रिश्तों के अरमां।
हर रिश्ता है एक भावभीनी कहानी,
हर पल एक सागरी हिलोर नादानी।
यादों की गुल्लक में, ये कैसा संगम,
क्या खोया, क्या पाया, ये जड़-जंगम
बस यही अहम रिश्ते सजाएं जिंदगी,
ईर्ष्या-द्वेष को छोड़ प्यार की वन्दगी।
एक बार के बिछुड़े फिर मिलते नहीं।
टूटे हुए फूल डाली में पुनः लगते नहीं
संभाल इन रिश्तों को, प्यार से बितायें,
कर कर्म मानव के ईश्वर ध्यान लगायें
जिन्दगी जल बुदबुदे सी व्यर्थ न गंवायें
वसुधैव कुटुम्बकम का भाव अपनायें।
