युगदृष्टा आत्म चित्रकार
युगदृष्टा आत्म चित्रकार
कोलकाता की धरा, जन्मे टैगोर महान,
"रबी"कहे प्रियजन,आलोकित था ध्यान।
देबेंद्रनाथ के बेटा,शारदा माँ की वे शान,
संस्कृति-संवेदनी गरिमा उनकी पहचान।
कविता, कहानी,गीतों के थे वे सृजनहार,
"गीतांजलि" छू नोबेल ने लिया आकार।
बंगाल की माटी में,भरे उन्होंने रंग हजार,
"चोखेर बाली","गोरा"जैसे मोती से स्वर।
बाल विवाह,दहेज पर कड़ी चोट थी की,
समाज सुधार की चुपचाप नयी भेंट दी।
निकाल ,कूंची मन भाव चित्रित दे नाम,
कला की हर विधा के सृजे नये आयाम।
नाइटहुड की उपाधि वे ठुकराये शान से,
जलियांवाला काण्ड पर रोये आवाम से।
साहित्य, संगीत,समाज के थे वे पुजारी,
भारत-रत्न , विश्ववंद्य, युगों तक मारी।
स्वरचित डा० विजय लक्ष्मी
'अनाम अपराजिता'
