धर्म-अधर्म
धर्म-अधर्म
धर्म-अधर्म समझना है गर,
चलिए पढ़ें महाभारत।
सत्य-असत्य समझ आएगा,
तिरस्कार अपमान हिकारत।
कैसे पुत्र- मोह, वचनों में,
बड़े- बुजुर्ग रहे जकड़े।
धर्म नीति के जो थे पालक,
राह अधर्म रहे पकड़े।।
सच को सच न कह पाए,
कभी झूठ पर न टोका।
शीश झुकाए रहे निरुत्तर,
चीर हरण को न रोका।।
दुर्योधन की दुष्प्रवृत्ति व,
गलती पर पर्दा डाला।
आस्तीन का साँप शकुनि,
अपने ही घर में पाला।
जो राजा सिंहासन के प्रति,
सच्ची निष्ठा न रख पाता।
मुखिया करता पक्षपात यदि,
तभी महाभारत हो जाता।
मानवता जिसमें बसती है,
होता वही बड़ा इंसान।
रहो सत्य के साथ हमेशा,
होता मानव धर्म महान।
