पिता का प्यार
पिता का प्यार
(पितृ दिवस पर विशेष)
किया ही क्या है..?
होता न अहसास कमी का,
पास पिता के होने पर।
करता है आभास एक दिन,
पुत्र पिता को खोने पर।
क्या अहमियत ज़िम्मेदारी,
कैसे पिता निभाता है?
बात समझ में आए जब,
पुत्र पिता बन जाता है।।
क्या चिंताएँ खाए जातीं?
क्या रहती हैं इच्छाएँ ?
किसे बताएँ कैसी-कैसी?
पिता झेलता बाधाएँ ?
ऊपर दिखे नारियल जैसा,
लेकिन हृदय मुलायम हो।
करे पिता न प्रेम उजागर,
किंतु प्रेम उर कायम हो।
अपनी व्याकुलता हैरानी,
दर्द दबाकर रखते हैं।
किंतु पिता के कुछ बच्चे,
किया ही क्या है कहते हैं।
देखो तो संतान कलयुगी,
सर नीचा करवाती है।
मात-पिता भेजे वृद्धाश्रम,
तनिक लाज न आती है।
आना-जाना रीत पुरानी,
जो आता वह जाता है।
पितृऋण से लेकिन कोई,
उऋण नहीं हो पाता है।।
