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Devendraa Kumar mishra

Abstract

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Devendraa Kumar mishra

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आज का जीवन

आज का जीवन

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कविता रूठ गई 

सरिता सूख गई 

मन वीणा के तार उलझ कर 

रह गए आपस में 


मर्यादा लांघने लगा सागर 

दरख्त, सख्त हो गए 

तूफान खूनी हो गया 

प्रेम बंधन चटक कर रह गए आपस में

मन टूट गया, तन घायल हुआ 


आंखें प्यासी रह गई 

पेट पापी हो गया स्वार्थ में 

मंदिर पथरीले हुए 

इंसान जहरीले हुए 

शैतानों का बोलबाला 

अयोध्या ध्वस्त हो गयी द्वेष में 

कला कलुषित हुई 


अश्लीलता, संस्कृति बनी 

संस्कार नग्न हो गए 

शोर शराबा, खोखलापन घुल गया जीवन में।


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