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Sajid Husain

Abstract

5.0  

Sajid Husain

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ये भारत के ही मुसलमान है

ये भारत के ही मुसलमान है

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ये सब जो मुसलमान हैं

ये भारत के मुसलमान हैं

ये सब पहले हिन्दू थे

मगर अब मुसलमान हैं


ये आज भी अपने गौत्रों से हैं जुड़े

ये कुश्वाहा, त्यागी और चैहान हैं

ये भारत के मुसलमान हैं

ये सब के लिए कपड़ा बुनते हैं


ये सर्दी में रूई धुनते हैं

उस रूई से रज़ाई बनाते हैं

और सब चैन की नींद सो पाते हैं।

ये सबके मकान बनाते हैं


हर जगह दुकान लगाते हैं

ये तरह तरह के बर्तन बनाते हैं

इन बर्तनों में सब खाना खाते हैं 

ये ठेलों पर फल बेचते हैं


जब ग्राहक को देखते हैं

उसकी ओर लपकते हैं

ग्राहक इन्हें झिड़कते हैं।

ये नहीं देखते वह हिन्दू सिख या ईसाई है


ये तो कहते हैं ये सब हमारे ही भाई हैं

क्योंकि इन्ही से इनका रोज़गार चलता है

इन्ही से इनको पैसा और प्यार मिलता है

ये ठेले वाले बहुत बोलते भी हैं


इनमें से कुछ कम तोलते भी हैं

इनको पता नहीं इनका धर्म कहता है

कम तोलने वाला नरक में रहता है

ये बड़े जालिम और निर्दयी लोग हैं

क्योंकि ये जीवों को मारते-काटते हैं


त्यौहारों पर उनका गोश्त बांटते हैं

फिर उस गोश्त से कबाब बिरयानी बनाते हैं

और दयावान लोग इस बिरयाीन को खाते हैं

ये औरतो को घरों में बंदी बनाते हैं


बाहर गर्मी में उन्हें बुर्का उढाते हैं

मगर इनकी औरतें इसी में खुश रहती हैं

वे पर्दे को आन और बुर्के को शान कहती हैं।

इनमेें से कुछ बाहर देश से आये हैं

और अपने साथ अज़ान और नमाज़ लाये हैं

ये पांच वक्त की नमाज़ पढ़ते हैं


भारत की सलामती की दुआ करते हैं

ये केवल एक ईश्वर को मानते हैं

चार ईश्वर वाले इनको बुरा जानते हैं

चार ईश्वर वाले भी अपने धर्म को नहीें जानते हैं

जबकि उनके पुरखे ये बात सच्च मानते हैं


वे कहते है, ईश्वर एक और निराकार है

उसका कोई बेटा, भाई न दोस्त-यार है

वह सबको एक ही दृष्टि से देखता है।

सभी पर अपनी दया और क्रोध फेंकता है


ये भी इन्सान है जो मुसलमान हैं

कुछ कहते हैं ये बंगाली या अफ़गान हैं।

इनका देश पाकिस्तान या भूटान है

सवाल यह है ये आये क्यों हैं


अपने साथ ग़रीबी लाये क्यों हैं

ये कहते हैं हम गरीब थे, ग़रीबी लाये थे

मगर यहां आकर हमने कुछ पैसे कमाये थे

हमने कुछ झोपड़ और मकान बनाये थे


क्योंकि हम अपने ही देशियों के सताये थे

यहां हमें केाई सताता नहीं है

भले ही हमें कोई खिलाता नहीं है

हम भारत के लोगों के बहुत काम करते हैं


और जो वो देते हैं उससे अपना पेट भरते हैं

हमें यहां आये सैकड़ों साल हो गये हैं

हम भारत की आबो-हवा में खो गये हैं

अब हमें नहीं लगता कि हम अफ़गान से आये हैं


अब कोई नहीं कहता कि हम भूटान से आये हैं

क्योंकि हमारी औरते इनके घर और बर्तन साफ करती हैं।

वो यही इन्हें के घरों में ज़िन्दा रहती और मरती हैं

मर्द भी उनसे हमदर्दी और प्रेम जताते हैं

कभी कभी उन्हें अच्छा खाना भी खिलाते हैं


कई लोग तो उन्हें कपड़े लाकर देते हैं 

कई अपनी लक्ज़री गाड़ी में घुमाते हैं

मालकिन औरतें उन्हें काम वाली कहती है

वे उनके साथ बहुत मिलजुल कर रहती हैं


चूंकि भारत के लोग बड़े महान भी हैं

इनमें से अधिकतर चरित्रवान भी हैं

फिर एक दिन अचानक कुछ कलैश उभरते हैं

कुछ घूमंतू लाग इनकी बस्ती से ‘गुजरते’ हैं

वे दया और प्रेम की चादर को कुतरते हैं


फिर एक साथ कई स्वर उभरते हैं

अरे ये भारत के मुसलमान नहीं हैं

ये तो घुसपैठिये हैं इन्सान नहीं हैं

इनको अब भारत से निकालना चाहिए।

या फिर बंदीगृहों में डालना चाहिए


चूंकि ये देश तो हमारा है

ये हमें जान से भी प्यारा है

ये धरती तो हमारी जागीर है

हम इसके स्वामी इसके वीर हैं

हमने ही ये धरती ये देश बनाया है


हमने ही चांद और सूरज को उगाया है

ये हवा ये पानी तो हमारा है

हमी ने इन्हें आकाश से उतारा है

ये प्रकृति की छटा तो हमारी है


ये बारिश ये घटा तो हमारी है

हम इसे हरगिज बटने नहीं देंगे

एकता केे प्रकाश को छटने नहीं देंगे

घुसपैठिये तो इन्सान नहीं होते हैं


उनकी भावनायें और अरमान नहीं होते हैं

वे पित और पति नहीं होते

वे हमारे जैसे व्यक्ति नहीं होते

फिर चारों और यही शोर उभरने लगा

घुसपैठियों के नाम पर इन्सान मरने लगा

कुछ लोगों ने कहा भी क्या ये बे-ईमान हैं


इन्हें मत मारो ये भी तो आख़िर इंसान हैं

इन्हें भी दुख और संताप तो होता होगा

बेटे की मौत पर बाप रोता तो होगा


भले ही ये सब मुसलमान हैं

मगर हमारे जैसी ही इंसान हैं

ये भारत के ही मुसलमान है

ये भारत के ही मुसलमान हैं।


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