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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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दोहे - कहें सुधीर कविराय

दोहे - कहें सुधीर कविराय

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धार्मिक 

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शनि देव का कीजिए, पूजा-पाठ अरु ध्यान।

कष्ट मिटे खुशियां मिले, समझो ये विज्ञान।।


राम नाम के मर्म को, जिसने लिया है जान।

पढ़ना उसको फिर नहीं, जीवन का विज्ञान।।


शनि देव का कीजिए, पूजा-पाठ अरु ध्यान।

कष्ट मिटे खुशियां मिले, समझो ये विज्ञान।।

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तुलसी 

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तुलसी गुण से पूर्ण है, औषधि गुण भंडार।

जिसने महिमा जान ली, उसका बेड़ा पार।।


तुलसी की महिमा बड़ी, जाने सब संसार।

पावन मिलता है नहीं,तुलसी को आधार।।


तुलसी पौधा जानना, बड़ी भूल है मित्र।

सभी गुणों की खान ये,आप खींच लो चित्र।।


उर्जा का भंडार है, तुलसी मातु महान।

सत्य सनातन धर्म में,इसका फैला ज्ञान।।


घर-घर तुलसी पौध का, यदि निश्चय हो जाय।

तुलसी दर्शन-स्पर्श से, तन मन स्वस्थ सहाय।।

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यमराज 

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आज सुबह यमराज ने, भेजा है संदेश ।

धरा लोक में आप ही, लगते मुझे विशेष।।


सुबह- सुबह यमराज ने, भेजा भोर प्रणाम।

मिलता हूँ मैं बाद में, अभी बहुत है काम।।


सुबह सुबह यमराज जी, गये राम दरबार।

हाथ जोड़ विनती किया, आप करो उद्धार।।


कविता पढ़ने आ रहे, कवि प्रियवर यमराज।

हाल खचाखच भर गया,मजा आ गया आज।।


आये जब यमराज जी, देने साक्षात्कार। 

संचालक सब भूलकर, किए बहुत सत्कार।


आकर जब यमराज ने, मुझको किया प्रणाम।

मैंने भी आशीष दे,  याद दिलाया काम।।


बीते कल यमराज ने, किया बहुत हल्कान।

जब तक देखा था नहीं, मुख मेरे मुस्कान।।


भेज रहे यमराज जी, आज फ्रेंड रिक्वेस्ट।

आप सभी कर लीजिए, यारों अब एक्सेप्ट।।


प्रभु जी अब तो आप ही, मुझे गुरू स्वीकार।

और नहीं अब कीजिए, तनिक और तकरार।।


कविता पढ़ने आ गये, आज सुबह यमराज।

 बिन मेरी कविता सुने, बता गये बहु काज।।

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नियम

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भला आप क्यों कर रहे, नियमों की बकवास।

अच्छे खासे मूड का, करते   सत्यानाश।।


नियम बनाना काम है, वो करते हो आप।

और उसे हम तोड़ते, क्या हम करते पाप।।


नये नियम हैं बन रहे, लोकरीति में नित्य।

यदि कोई तोड़े नहीं, फिर क्या है औचित्य।।


नियम बन्ध बकवास है, छोड़ दीजिए आप।

धरती पर इससे बड़ा, दूजा नहीं है ताप।।


पालन नियमों का करें, वे मूरख अज्ञान।

या फिर पाया है नहीं, जिसने गुरु का ज्ञान।।

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प्रतीक्षा

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बहुत प्रतीक्षा हो गई, कब आओगे आप।

आखिर ऐसा कौन सा, मैंने किया है पाप।। 


बड़ी प्रतीक्षा राम की, तब आये वो धाम।

वर्ष पांच सौ बाद ही, अब दर्शन अविराम।।


मातु -पिता औलाद की, करें प्रतीक्षा रोज।

और भूलकर हम उन्हें, स्वार्थ रहे हैं खोज।।


कहाँ प्रतीक्षा आपकी, नाहक हो हैरान।

इंसानी गुण मर गया, जाग उठा शैतान।।


नेता जी करते रहे, कुर्सी खातिर काम।

सूची से गायब हुआ, जा

ने कैसे नाम ।।

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वचन

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वचन पालना भूलना, बनती जाती रीति।

दिखती सबकी आज कल, सुंदर सी ये प्रीति।।


बड़े गर्व से दे रहे, वचन आजकल लोग।

ढूंढें फिर वे न मिलें, क्या कोई संयोग।।


दशरथ जी के वचन का, रखा राम ने लाज।

एक पल की देरी बिना, त्याग दिया था ताज।।


मर्यादा अब वचन की, बची कहाँ है मित्र।

जिधर नजर है जा रही, कलुषित दिखता चित्र।


रिश्तों में भी वचन का, रहा कहाँ अब भाव।

नहीं वचन को मिल रहा, अब कोई सम भाव।।

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विविध 

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भोगा किसने राज सुख, किसने कारावास।

किसने जीवन ताप सह, किया राम विश्वास।।


सुबह सबेरे नित्य ही, बिस्तर छोड़ो आप।

रोग दोष से मुक्त हो, मिटे स्वास्थ्य संताप ।।    


 मातु पिता का कीजिए, नित्य सभी सम्मान।

 इतने भर से आपका,ऊँचा होगा मान।।


भला सवेरा आज है, चमक धूप के साथ।

 नहीं सेंकना पड़ेगा, हमको अपना हाथ।।


आये हम भी सीखने, छंद पटल के द्वार।

हे गणपति करिए कृपा, आप करो उद्धार।।


मर्यादा का हो रहा, कलयुग में नित हास।

हम सब भी हैं बन रहे, हरी भरी सी घास।।


नेता जी चोरी करें, देखो उनके ठाट।

जनता की है लग रही, जब देखो तब वाट।।


बड़े जतन से माँ पिता, पाल रहे संतान।

फिर उनके दुख-दर्द का, समझें कौन विधान।।


आभासी संसार में, उलझे जाते लोग।

बढ़ता ही है जा रहा, जन मानस का रोग।।


नित्य नियम बादाम जो, खाता खाली पेट।

स्वस्थ मस्त रहता सदा, हँसकर करता भेंट।।


मिलकर आओ हम करें, ईश्वर से अरदास।

हल जन मन खुशहाल हों, सब पर हो विश्वास।।


जीवन का सारांश तो, बहुत कठिन है मित्र।

समझ नहीं आता मुझे, कैसे खींचू चित्र।।


यह कैसा आगाज है, जिसका दिखे न छोर।

समय व्यर्थ होता रहे, हो जाता मन बोर।।


झूठा ये संसार है, समझ लीजिए आप।

झूठ सत्य की ओट में, करता रहता जाप।।


बिगड़ रहा आधार है, जन मन का अब नित्य।

समझ नहीं आता हमें, क्या इसका औचित्य।।


अपने अब बुन हैं रहे, रोज नया ही जाल।

बाहर वाले लग रहे, हुए आज कंगाल।।


भीतर काजल कोठरी, कौआ भी शर्माय।

उनको देखा आज जब, गंगा चले नहाय।।


मात पिता हैं आपके, ऊँचा होगा ‌नाम।

आप करेंगे जब सदा, सीधा सच्चा काम।।


नयन बहाती नीर है, आखिर में क्यों यार।

सुख-दुख से क्या हो गया, उसको इतना प्यार।।


विनय हमारी राम जी, रखें शीष मम हाथ।

हर पल हर दिन आप हों, सदा हमारे साथ।।


तन पर लगती चोट का, मिट जाता है दर्द।

वही चोट जब दिल लगे, टीस बड़ी बेदर्द।।


वाणी से हैं दे रहे, नेता गहरी चोट।

वोटों की खातिर भरा, उनके मन में खोट।।


संविधान की आड़ में, होते कैसे खेल।

नागिन चोटिल हो गई, काम न आई रेल।।



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