ज़िंदगी
ज़िंदगी
भोर की रौशनी सुनहरी है,
ज़िंदगी जेठ की दुपहरी है ।
एक फूलों की महकती वादी -
पीर की खाई बड़ी गहरी है ।।
देह छँटती है उम्र घटती है,
ज़िंदगी यूं ही कहाँ कटती है ।
राह कल आज और कल की भी
इन्हीं में आत्मा भटकती है ।।
ज़िंदगी ख़्वाब है इस ख़्वाब को ताबीर बना,
दिल के आईने में अपनी कोई तस्वीर बना ।
वक्त को यूँ ही न बेकार गुज़र जाने दे -
खुद को तू खोज ले मत देह को जंजीर बना ।।
ज़िंदगी रब की मेहरबानी है,
अनबुझी प्यास की कहानी है ।
तृप्ति का घूंट ग़र नहीं मिलता -
उम्र भर भटकती जवानी है ।।
कोई उम्मीद है न आशा है,
कोई एहसास की न भाषा है ।
पर यहाँ मौत ही है सच्चाई -
ज़िंदगी रब का एक तमाशा है ।।
ज़िंदगी हाथ से फिसलती है,
मौत जब साथ साथ चलती है ।
हाथ में अपने कुछ नहीं रहता -
बर्फ़ नाकामियों की गलती है ।।
ज़िंदगी दर्द का तराना है,
आँसुओं से लिखा फ़साना है ।
राह में लाख मुश्किलें रहें तो भी -
हम को हर हाल मुस्कुराना है ।।
वक्त रुकता नहीं पानी सा बहा जाता है,
रात ढलती है आफ़ताब चला आता है ।
ज़िन्दगी एक पहेली है सुलझती ही नहीं -
इसे समझाने में जीवन ही जला जाता है ।।
एक ठिठका हुआ सैलाब है बह जाएगा,
एक सपना है इमारत का तो ढह जाएगा ।
ज़िंदगी राह है रुकती नहीं चौराहों पर -
यह गुज़र जाएगी बस अक्स ही रह जाएगा ।।
ज़िंदगी गम का इक फ़साना है,
अपनों का काम 'काम आना' है ।
सब जहाँ साथ हैं छुड़ा लेते -
बस वहीं पर मेरा ठिकाना है ।।
ज़िंदगी दर्द का फ़साना है,
या कोई प्यार का तराना है ।
रोशनी है कि बस अंधेरा ही -
हमको सच के करीब जाना है ।।
मौत ज़िंदगी साथ जनमते बस पल भर की दूरी है,
जीने की खातिर कोई मकसद भी बहुत जरूरी है ।
जब तक रब की रज़ा न हो दर उसका नहीं खुला करता -
इसीलिए जीते जाना हर इंसां की मजबूरी है ।।
जिंदगी ख़्वाब ख़्वाब चलती है,
दर्द की शम्मा साथ जलती है ।
कभी रौशन कभी सियाह रहे -
रात भी करवटें बदलती है ।।
चलनी होगी सदा ज़िंदगी की डगर कोई हमराह बनकर चले ना चले,
रात यूं ही बिखेरेगी तारीकियां राह में कोई दीपक जले ना जले ।
चांद पल भर रहे या रहे रात भर चांदनी फिर पले ना पले प्यार में -
एक पल बन के अंगार हम जी लिये शाम की उम्र चाहे ढले ना ढले ।।
यह ज़िंदगी तो रब का उपहार है अनोखा,
इस ज़िंदगी में फिर क्यों देते हैं लोग धोखा ?
इस ज़िंदगी को यारों तुम तो संभाले रखना -
यदि चूक हो गई तो पाओगे फिर न मौका ।।
ज़िंदगी फ़कत एक फ़साना है,
जीना मरना तो एक बहाना है ।
जिसको तारीकियां बुझा न सकें
हमको ऐसी शमा जलाना है ।।
बन गई ज़िंदगी तमाशा है लोग मगरूर हुए जाते हैं,
सच सभी ख़्वाब लग रहे थे जो पल में ही चूर हुए जाते हैं ।
ज़िंदगी क्या है समझने में हम डूबते हैं न पार हैं पाते -
चाहते हैं करीब आना पर खुद से ही दूर हुए जाते हैं ।।
ज़िंदगी इक खुली किताब सी है,
मौत इसका सही जवाब सी है ।
चाहतों ने जिसे संवारा हो -
ये उसी अनछुए गुलाब सी है ।।
जनम मृत्यु के बीच बहती नदी,
छुए ज़िंदगी को न कोई बदी ।
समझने की खातिर इसे ही मगर -
यहां बीत जाती हज़ारों सदी ।।
खुशी तो जुगनुओं सी छलती है,
पीर बन कर मशाल जलती है ।
ज़िंदगी यूं ही राहे मंजिल पर-
लड़खड़ाती है और संभलती है ।।
ज़िंदगी दर्द है फ़साना है,
मेरे जीने का तू बहाना है ।
मुझसे तू दूर न होना साथी -
तुझसे ही ज़िंदगी ज़माना है ।।
ज़िंदगी रूह का फ़साना है,
एक भूला हुआ तराना है ।
ख़्वाहिशों से लिखी कहानी यह -
ज़िंदगी ख़्वाब है बहाना है ।।
ज़िंदगी भोर सी सुनहरी है,
नीले सागर से भी यह गहरी है ।
ज़िंदगी एक सफ़र है साथी -
किसी मुकाम पर न ठहरी है ।।
ज़िंदगी सिर्फ़ एक ख़्वाहिश है,
हर घड़ी एक आजमाइश है ।
राहे रब में किया हुआ सजदा -
खुद से ही की हुई गुज़ारिश है ।।
करे न मन यदि मनन उसे मन कौन कहे,
छुआ न जाये जिसे उसे तन कौन कहे ?
जीव जीव को पवन सांस देता फिरता -
सांस न ले जो उसको जीवन कौन कहे ।।
जब जब अनंत में प्रकृति पुरुष मिल जाते हैं,
मुरझाये फूल धरा के सब खिल जाते हैं ।
पर सिर्फ़ देह से नहीं जिंदगी है होती -
उसमें तो रूह प्राण मन दिल सब आते हैं ।।
ज़िंदगी ख़्वाब की जन्नत नहीं कुछ और भी है,
ऐशो आराम की दौलत नहीं कुछ और भी है ।
दूसरों के लिये जीना भी एक मक़सद है -
सिर्फ़ इंसान की मन्नत नहीं कुछ और भी है ।।
ज़िंदगी को अभी कुछ और निखरना होगा,
पंखुड़ी बन के रास्तों पर बिखरना होगा ।
मुश्किलें हैं बड़ी तूफ़ान भी डराते हैं -
आगे बढ़ना है तो हर हद से गुज़रना होगा ।।
ज़िंदगी ख़्वाब है कहानी है,
एक भूली हुई निशानी है ।
है उम्मीदों का एक गुलदस्ता -
दुख भरी है मगर सुहानी है ।।
देह प्राणों का आशियाना है,
साधनों का यही ठिकाना है ।
उसको पाना नहीं जरूरी पर -
खुद में अपनी खुदी को पाना है ।।
जिंदगी खुद की मेज़बानी है,
कर्म फल भोग की कहानी है ।
जिंदगी दर्द का है एक रिश्ता -
राह खुद को स्वयं दिखानी है ।।
आज मौसम बड़ा सुहाना है,
हवा भी गा रही तराना है ।
ज़िंदगी एक लहर समंदर की
पास आना है दूर जाना है ।।
पीर एहसास लूट जाती है,
आस बनती है टूट जाती है ।
ज़िंदगी भी अजीब शै है जो -
कभी मनती है रूठ जाती है ।।
ज़िंदगी जैसे एक पहेली है,
हमने तनहाई इतनी झेली है ।
दर्द है दोस्त बन गया अब तो -
खामोशी बन गई सहेली है ।।
थोड़ी कसमें हैं थोड़े वादे हैं,
जो अधूरे रहे इरादे हैं ।
ज़िंदगी ने यूं मात दी हमको -
हाथ में ऊंट हैं न प्यादे हैं ।।
अश्कों की आंखों में गर नमी ही न होती,
तो नाजुक लबों पर हंसी भी न होती ।
अगर मौत की शै न होती जहां में -
तो यह ज़िंदगी ज़िंदगी भी न होती ।।
लोग कब मोह छोड़ पाते हैं,
वक्त की धार मोड़ पाते हैं ।
ज़िंदगी हाथ से फिसल जाती -
एक लम्हा न जोड़ पाते हैं ।।
ये हक़ीक़त बड़ी पुरानी है,
सारी दुनिया की ये कहानी है ।
जिये जाना कोई आसान नहीं -
इसी का नाम ज़िंदगानी है ।।
ज़िंदगी दर्द का पुलिंदा है,
यहां हर मोड़ एक दरिंदा है ।
है ये ताज्जुब कि आदमी देखो -
ऐसे माहौल में भी ज़िंदा है ।।
बिछड़ी जो अपने सूरज से यह तो वही किरन है,
पारब्रह्म को छूकर जो आया वह नन्हा तन है ।
दूर हुई जो अपने प्रिय से विकल आत्मा प्यासी -
मिट्टी से मिल सांस ले रहा जो वह ही जीवन है ।।
सांस जो आठों पहर आती है,
एक ठोकर पर ठहर जाती है ।
बड़ी नाजुक है यह सांसो की लड़ी -
एक झोंके से सिहर जाती है ।।
रात ढली अनुरक्त गगन था भोर सुहानी थी,
भोला बचपन था फिर आई मदमस्त जवानी थी ।
कुछ पल साथ निभा कर यौवन भी मुंह फेर गया -
साथ बुढ़ापा लिखी चिता पर गई कहानी थी ।।
रूह पंडित जगत घराती है,
मौत दूल्हा है दुख बराती है ।
ज़िंदगानी के शामियाने में -
जिस्म दुल्हन न कोई साथी है ।।
हुआ न जो वो अब न हो जाये ।
ज़िंदगी बे सबब न हो जाये -
वह जिसे जानते हैं हम अपना -
ज़िंदगानी का रब न हो जाये ।।
चांद टूटा हुआ अधूरा है,
गगन में बिखरा इसका चूरा है
ज़िंदगी को न अधूरी समझो -
इसका हर एक वरक पूरा है ।।
ज़िंदगी सांस का समंदर है,
सभी की रूह इसके अंदर है ।
खुदी मिटा के जो मिला उसमें -
वही तक़दीर का सिकंदर है ।।
ज़िंदगी सांस की रवानी है,
अनबुझी प्यास की कहानी है ।
एक अनोखा सफ़र है ये जीवन -
और मंजिल भी तो अनजानी है ।।
ज़िंदगी स्वर्ग की नसेनी है,
रूह तन श्वास की त्रिवेणी है ।
ज़िंदगी सिर्फ़ कर्म का बंधन -
जो मिली ब्याज सहित देनी है ।।
सांस जब देह में समाती है,
मरी मिट्टी भी सरस जाती है ।
है घटाओं में चमकती बिजली -
बूंद अमृत की बरस जाती है ।।
यहां इंसान हर अकेला है,
मोह है ज़िंदगी का रेला है ।
छोड़ दे अब तो मोह माया को -
कि ये चलाचली की बेला है ।।
ज़िंदगी राह बदल जाती है,
सांस चुपके से निकल जाती है ।
यूं तो हमराह हैं कई होते -
साथ पर मौत ही निभाती है ।।
ज़िंदगी का तो एक बहाना है,
वरना तो यूं ही जीए जाना है ।
सुबह भी आती है खाली खाली -
दिन को भी यूं ही गुज़र जाना है ।।
ज़िंदगी दर्द का खुलासा है,
प्यास आधी है इक तमाशा है ।
जब उसी ने है फेर लीं आंखें -
फिर संभलने की नहीं आशा है ।।
तीन दिन सिर्फ़ ज़िंदगानी है,
जन्म और मौत की कहानी है ।
एक बचपन तो दूसरा यौवन -
तीसरे में ढली जवानी है ।।
जिंदगी इश्क़ का ककहरा है,
रंग चमकीला और सुनहरा है ।
रंग ए वस्ल ही नहीं इसमें -
हिज्र का रंग भी तो गहरा है ।।
ज़िंदगी जिस्म में जो ढलती है,
तो कई सूरतें बदलती है ।
उग रही है कहीं सूरज बन कर -
तो कहीं शाम बन के ढलती है ।।
सिर्फ़ जीने का नहीं नाम ज़िंदगानी है,
ये मुरादों भरी दिलचस्प इक कहानी है ।
लोग आते हैं गुज़र जाते हैं ख़्वाबों की तरह -
ये समंदर भी है दरिया की भी रवानी है ।।
ज़िंदगी बन गई फ़साना है,
गोकि मौसम बड़ा सुहाना है ।
चंद लम्हों में सभी रिश्तों को -
हमें अब फिर से आजमाना है ।।
ज़िंदगी बर्फ़ की मानिंद पिघल जाती है,
धूप की तरह जवानी भी तो ढल जाती है ।
चार कंधों पे है जब आखिरी सफ़र होता -
दीप माला हजारों याद की जल जाती है ।।
ज़िंदगी कब सरल थी हुई,
कब मैं इतनी विरल थी हुई ।
थी सुधा बिंदु जैसी हंसी -
हर खुशी पर गरल थी हुई ।।
ज़िंदगी जैसे एक फ़साना है,
प्यार जीने का एक बहाना है ।
गम सभी ओर से घिरे आते -
जाने किस ओर हमें जाना है ।।
ज़िंदगी रब की मेहरबानी है,
उसका एहसास है निशानी है ।
चलते चलते ये जब ठहर जाये -
समझ लेना कि बस कहानी है ।।
ज़िंदगी नूर की कहानी है,
कुछ मेरी तेरी कुछ जबानी है ।
जब ये ठहरे तो मौत बन जाए -
है हवा नदी की रवानी है ।।
ज़िंदगी प्यार का तराना है,
खूबसूरत सा एक बहाना है ।
ज़िंदगी जब तलक नहीं ठहरे -
तब तलक सबको जिये जाना है ।।
ज़िंदगी भोर का सितारा है,
ये हमारा न ही तुम्हारा है ।
सिर्फ़ मौजों का उफनता सागर -
है न साहिल न ये किनारा है ।।