कोहबर
कोहबर
बना कर
गेरू का घोल
छोटी सी लकड़ी के
सिरे पर
लपेट कर रुई
बना कर ब्रश
लिपी पुती भीत पर
उकेरती हैं सुहागिनें
गणपति लक्ष्मी
स्वास्तिक
सूरज चांद
सातों मैया
चारा खाती गैया
दुल्हा दुलहिन
डोली कहार
तलवार लिए
घुड़सवार
मेहँदी रची हथेलियां
झूला झूलती
सखी सहेलियां
परी चिरैया
गाय बछड़ा
गलबहियां डाले
कुंवारी कन्याएं
झूला झूलते
बालक वृंद
नाचता मयूर
दाना चुगता कबूतर
पेड़ पर बैठी मैना
और चहचहाती
चुनमुनियां
सगुन मनाती मैया ।
कोहबर का लेख
सगुन का नेग
नाउन का ठनगन
सब हो गईं
बीते जमाने की बातें
भूल गए हम
अपनी संस्कृति
अपने आचार
लोकाचार
प्रेम के प्रतीक
अपनेपन की लीक ll