क्या खोया : क्या पाया
क्या खोया : क्या पाया


आजादी के
इतने वर्ष
एक-एक कर
बीत गये
गत वर्षो का
लेखा-जोखा कैद है
इतिहास के
कुछ पन्नों में ।
हमने
आजाद जीवन के
विभिन्न आयामों में
क्या पाया ?
अभाव, महंगाई
और
कुछ न कर पाने की
घुटन
तालेबंदी,
हड़ताल की छूट
और बंद
नये चटपटे नारे
झूठे आश्वासन
और तड़पती हुई प्यास ।
क्रांति की कुंठित ज्वाला
धधक उठी है
लेकिन रास्ता कहां है ?
पाने का पलड़ा
ज्यादा भारी है
हमने खोया ही क्या है
इन वर्षों में ?
सिर्फ इंसानियत
और
ईमान ही तो
और अब
एक मसीहा आया है
देश की
डूबती नौका की
पतवार को
संभालने के लिए
लड़खड़ाते हुए ढांचे को
नया रूप देने के लिए
आइए
नए वर्ष में
स्वागत करें
उसके प्रयासों का
मजबूत करें उसके हाथ
देकर हर कदम
उसका साथ ।