डॉ. रंजना वर्मा

Abstract

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डॉ. रंजना वर्मा

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मेरा देश

मेरा देश

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देश की  मेरे  सुबह  अनोखी  कितनी  प्यारी शाम है ।

हर रज कण चन्दन सा पावन शोभा अमित ललाम है ।।


यहाँ हिमालय गंगा यमुना

मुम्बई है चौपाटी है,

कण कण में फैली हरियाली

चन्दन जैसी माटी है ।


साँझ सुहानी  निशा  सलोनी  भोर  बड़ी अभिराम है ।

हर रज कण चन्दन सा पावन शोभा अमित ललाम है ।।


इस धरती को रोज सवेरे 

सूरज  शीश  झुकाता  है,

त्रिविध समीरण गौरव गाथा

इसकी निशि दिन गाता है ।


कन्या  रूप  स्वयं  देवी  का  हर  बालक  श्री राम है ।

हर रज कण चन्दन सा पावन शोभा अमित ललाम है ।।


धरा  यही  वैकुंठ धाम है

मोक्ष  यहीं  जन  पाता है,

यहीं जन्म लेता वह ईश्वर

जो जग - जीवन - दाता है ।


जग कर्ता  धर्ता  भर्ता  को  सब  ने  किया  प्रणाम है ।

हर रज कण चन्दन सा पावन शोभा अमित ललाम है ।।


धरती है मरकत मणि जैसी

नीलम  सा  आकाश  है,

सागर चरण पखारे निसदिन

मणिमय मुखर उजास है ।


षड ऋतुओं से सजी  भूमि  देती  जग को  विश्राम है ।

हर रज कण चन्दन सा पावन शोभा अमित ललाम है ।।



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