मेरा देश
मेरा देश
देश की मेरे सुबह अनोखी कितनी प्यारी शाम है ।
हर रज कण चन्दन सा पावन शोभा अमित ललाम है ।।
यहाँ हिमालय गंगा यमुना
मुम्बई है चौपाटी है,
कण कण में फैली हरियाली
चन्दन जैसी माटी है ।
साँझ सुहानी निशा सलोनी भोर बड़ी अभिराम है ।
हर रज कण चन्दन सा पावन शोभा अमित ललाम है ।।
इस धरती को रोज सवेरे
सूरज शीश झुकाता है,
त्रिविध समीरण गौरव गाथा
इसकी निशि दिन गाता है ।
कन्या रूप स्वयं देवी का हर बालक श्री राम है ।
हर रज कण चन्दन सा पावन शोभा अमित ललाम है ।।
धरा यही वैकुंठ धाम है
मोक्ष यहीं जन पाता है,
यहीं जन्म लेता वह ईश्वर
जो जग - जीवन - दाता है ।
जग कर्ता धर्ता भर्ता को सब ने किया प्रणाम है ।
हर रज कण चन्दन सा पावन शोभा अमित ललाम है ।।
धरती है मरकत मणि जैसी
नीलम सा आकाश है,
सागर चरण पखारे निसदिन
मणिमय मुखर उजास है ।
षड ऋतुओं से सजी भूमि देती जग को विश्राम है ।
हर रज कण चन्दन सा पावन शोभा अमित ललाम है ।।