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Bhawna Kukreti

Abstract Inspirational

4.5  

Bhawna Kukreti

Abstract Inspirational

साथ चलो

साथ चलो

2 mins
474


जानती हूँ

तुम्हें डर लगता है

समय से

कि चली जायेगी

ये उम्र ऐसे ही

समय में कहीं खोती

चली जायेगी।

आज तुम

मेरे करीब बैठे

अपनी कविताओं

में बांधने बैठे हो

उस समय को

वो जो

भागता हुआ

एका एक

गुम जाएगा

पल भर में।

जैसे बहता

पानी पहुंचे अचानक

किसी सूखे

अनदेखे

प्यासे रेगिस्तान में।

बताओ

क्या करोगे

तुम तब

उस अकेली घड़ी।

क्या करेंगी

ये तुम्हारी

समय पर जीवन को

उधेड़ती, सुलझाती

संभालती

छोटी बड़ी कविताएं ।

क्या ये तब

याद आएंगी तुम्हें

जब खुद ही

याद नहीं रहेगा

खुद का भी होना।

सच बताना

सही कहती हूँ न

तुम्हें डर लगता है न

ऐसी बातों से!

अच्छा सुनो,

चलोगे क्या दो पल को

उन जगहों पर

जहां भूल जाना इतना

डरावना नहीं होता।

जहां सब

अपना पहचाना

होते हुए भी अनजाना

होता है।

हर रास्ता,

हर बात बस गुदगुदाती है

जहन और दिल को

बेमतलब ही।

बिना

किसी सवाल

बहता है निष्पक्ष समय

बिना उम्र को

सोचे।

जहां पता भी हो

की चली जाएगी ये

उम्र और बात

मगर अहसास न हो

उसने जाने का।

जो राह

मुस्कराती हुई हाथ

थामती हो

उस रेगिस्तान तक भी

जहां अचानक

गुम हो जाना ही

आखिर है।

क्यों न

हम ही हो जाएं

वो कविता

जो लिखी न गयी हो

समय पर।

जिन्हें कभी

समय या याद रहने

न रहने का

कभी गम भी न हो।

मगर

वो जब भी

पढ़ी जाएं समय से परे

तो सिर्फ सुकून हो

पढ़े जाने का।

क्यों न

ढलती उम्र

में चलो यूँ ही बैठे

कलम कागज को

परे कर।

कहें कविता

अपने मुस्कराते सूरज की

जिसने हमेशा

उगना ही है कहीं

बिना समय

से डरे।


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