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Bhawna Kukreti Pandey

Abstract Tragedy

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Bhawna Kukreti Pandey

Abstract Tragedy

रहम करो !

रहम करो !

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हमारी भी 

क्या हैरानी है

आज भी

बता सकते नहीं कि 

वो जिंदगी कहाँ है


जिसके लिए बचपन से

पन्ने काले करते रहे

जवानी में 

अदब लिहाज का 

दामन संभाले रहे

थोड़ा समय मिला

तो कुछ ख्वाब देखने

की हिमाकत की


ख्वाब वही

जिसके लिए कभी 

समय ही नहीं मिला

एक तमन्ना के पीछे, 

अपनो की आस 

और बस 

कुछ और समय 

की ही तो बात है


एक जरा और मेहनत 

और फिर 

जिंदगी हमेशा के लिए

खुशनुमा।


मगर 

आज है कहाँ

वो खुशनुमा जिंदगी ?

जिधर देखो उस ओर ही

कमी ही कमी है

शिकायतें ही शिकायते हैं

जमाने भर की।


जैसे ये सब 

बचपन से कहीं 

लगातार अपनी फौज

जुटा रही हो

कैद करने की कोशिश में


उस जिंदगी को

की जब 

जैसे ही दो पल मिलें

अपने लिए 

सोचने को 

घिसटती हुई 


जिंदगी के बारे में

ये घेर ले आए सम्मन

"हाजिर करो"

उसको 

जिसके लिए 

तुमने खोया बचपन

खपाई जवानी।


थका मन 

उनींदी आंखे

और 

इनका वही 

सवाल बार बार

"हाजिर करो"


मायूस 

एक चीख 

घुटी हुई 

सिसकते कहती है

रहम कर दो

कोई तो!


इस अधपकी 

उम्र में ही 

अब सांसों को

सांझ 

महसूस होने लगी है।


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