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GOPAL RAM DANSENA

Abstract Inspirational

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GOPAL RAM DANSENA

Abstract Inspirational

आ जरा लौट चलें

आ जरा लौट चलें

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जीवन के सफ़र में

बढ़ चले हैं बहुत दूर

बीते पलों की आगोश

में लौटूं तो जरूर।

कि देखूँ क्या पाया

की क्या खोकर आया

कि वक्त के दामन में

कौन सा रंग लगाया

रंगीन हकीकत या

कालिख दाग लगाया

आपको चलना है मेरे साथ

पचपन से बचपन में

आ जरा लौट चलें।

आकलन कर लीजिए

अभी का अभी से

मेरे पैर से सर तक

जड़ से जर तक

दूर से घर तक

असल से खबर तक

अनुमान से नजर तक

आप रखिए हिसाब

आ जरा लौट चलें

नन्हा सा जीव अरमान नया था

अपने पराये में न भेद बयां था

न धन दौलत ना ऊंच नीच

मन निर्मल जहां बसते ईश

बौनेपन का वो दिन

आकर देखो आज यहां

आज बौना लगता है जहां

फर्क देखना है जनाब

आ जरा लौट चलें

युवा मन उमंगों से भरा

जो ठान ले बदल दे धरा

हर कल्पना साकार कर दे

अपनों पर जान न्योछावर कर दे

सब कुछ अर्पण कर जात न पूछे

कहां वो दिन और कहां ये दिन झूठे

आज चढ़ा अहंकार का सैलाब

काश लौट आए वो दिन

या लौटा पाऊँ वो जज्बात

आ जरा लौट चलें।

आ जरा लौट चलें।

लो अब देखकर मोल लगाओ

तब और अब में तौल बताओ

तब के दिन भले या आज का मन दीन भला

हंसते खिलते तब भले या आज गमगीन भला

बेताल का ये सवाल नहीं है

विक्रम हों हम मजाल नहीं है

वक्त की थपेड़ों से हम चल रहे हैं

वक्त बदल रहा हम न बदल रहे हैं

क्या ले के जाना है बिगड़ी नहीं है बात

आ जरा लौट चलें


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