दो ही हैं जग में
दो ही हैं जग में
जहाँ आँसू छलक जाते हैं
वे दो ही हैं जग में I
ये तेरा वो मेरा
फिर ये रात वो सवेरा I
ये अमीर वो गरीब
उसका नसीब हम बदनसीब I
पाया वो पेट भर भोजन
कोई भूखा दौड़ता योजन I
आंख है सजल नहीं रिक्त
फिर भी दोनों हैं तृप्त I
कोई जल कर बुझा,
कोई बुझ कर प्रदीप्त I
दो भागों में बांटा, वो खाई
कोई रोता कोई बांटे मिठाई I
हाँ तेरा ही है तेरा कमाई ।
यहां रहा, वहां रहे तेरी ठकुराई ।
यह जीवन की दो ही हक में
जहाँ आंसू छलक जाते हैं
दो बूंद बरस जाते हैं बरबस में I
वे सुख और दुख दो ही हैं जग में ।