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GOPAL RAM DANSENA

Abstract Inspirational

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GOPAL RAM DANSENA

Abstract Inspirational

अंतर्द्वंद

अंतर्द्वंद

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कुछ न बदला अंदर बाहर I

प्रहार पर प्रहार आग चादर।


ये विनाश मानवता, मानव का।

कहां ले जाएगा प्रण मन दानव का।


कहीं नहीं रहम, कहीं कहीं वहम।

नहीं कहीं पश्चाताप, नहीं कोई गम।


वो बदलेगा यहीं प्रण,रहे प्राण न रहे

सब मूक बधिर, कुछ देखें न कहें।


मानवता रो रही, दुबक कर लहूलुहान।

यहीं रहा तो जग हो कर रहेगा विरान।


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