स्वार्थी मनुष्य
स्वार्थी मनुष्य
सूर्य की सुनहली किरणें जग को जगाती
अंधेरे को भगा संसार में उजाला फैलाती,
उठ कर काम करने की हमें प्रेरणा देती
सब के तन-मन में प्राण शक्ति भर देती ।
दूर दूर तक फैली किरणें की
जग सोया चादर ओढ़ेनी की,
अंधेरा भागा तलाश में, कोनों की
वातावरण मे भरा सन्नाटा शांति की।
चाँद की रोशनी में छिप गए तारे सारे
उन पर बिछ गए नी के ी डोरे,
दूर तलक दिखने लगे फैले सुंदर नजारे
चित्र में इंद्रधनुषी रंग घुलके ये रंग लाए रे।
इतनी खूबसूरत संरचना प्रकृति ने की
मानव को सौंपा भार इसके संरक्षण की,
वह फ़र्ज़ भुला चंगुल में आया स्वार्थ की
पैरों कुल्हाड़ी मार किया नाश स्वयं की।
मनुष्य अब भी आंखें खोले तो बच सके
पर्यावरण की रक्षा से प्रकृति संवार सके,
वृक्षारोपण कर हरियाली को बढ़ा सके
ऐसा कर आगे की पीढ़ी को भी बचा सके।
