घर में अंतर्द्वंद्व है, और बाहर मेहमान। समझ नहीं आता मुझे कैसे करूँ बयान।। घर में अंतर्द्वंद्व है, और बाहर मेहमान। समझ नहीं आता मुझे कैसे करूँ बयान।।
मानवता रो रही, दुबक कर लहूलुहान। यहीं रहा तो जग हो कर रहेगा विरान। मानवता रो रही, दुबक कर लहूलुहान। यहीं रहा तो जग हो कर रहेगा विरान।
तुम्हारी इन उलझनों में, मेरी तन्हाइयों में, सिर्फ मोहब्बत बस मोहब्बत छुपी है। तुम्हारी इन उलझनों में, मेरी तन्हाइयों में, सिर्फ मोहब्बत बस मोहब्बत छुपी है।
संग्राम करो - एक कविता हम सबके अंतर्मन की आवाज़, एक भीड़ का हिस्सा होक भी अपने अलग होने का सम्मान ! संग्राम करो - एक कविता हम सबके अंतर्मन की आवाज़, एक भीड़ का हिस्सा होक भी अपने अलग...
ओ स्वामी जीवन मे मेरे,तू खुशियों की धार है। तुम बिन तो जीवन नैया,अटकी मझधार है। ओ स्वामी जीवन मे मेरे,तू खुशियों की धार है। तुम बिन तो जीवन नैया,अटकी मझधार ह...
कभी-कभी कितना कुछ किसी से कहना चाहते हैं! कभी-कभी कितना कुछ किसी से कहना चाहते हैं!