मानवता रो रही, दुबक कर लहूलुहान। यहीं रहा तो जग हो कर रहेगा विरान। मानवता रो रही, दुबक कर लहूलुहान। यहीं रहा तो जग हो कर रहेगा विरान।
संवाद करने भर के लिए स्त्री, क्यों आखिर शब्दावली तलाशती है. संवाद करने भर के लिए स्त्री, क्यों आखिर शब्दावली तलाशती है.
छुपे मुझमें ही कहीं बनकर मेरी एक अनलिखी_कविता। छुपे मुझमें ही कहीं बनकर मेरी एक अनलिखी_कविता।