ग़ज़ल
ग़ज़ल
कभी-कभी कितना कुछ किसी से कहना चाहते हैं,
पर कह नहीं पाते विचारों में खुद को उलझा देते हैं,
एक अंतर्द्वंद सा चलता रहता है हमारे मन के अंदर,
अभी समय नहीं है कहने का खुद को समझा देते हैं,
खुद को तो समझाया जा सकता है पर मन को नहीं,
वो विचार मन में लहरों सा उथल-पुथल मचा देते हैं,
कभी-कभी रिश्तो के लिए चुप रहना जरूरी होता है,
कई बार मौन मन की उलझी गुत्थियां सुलझा देते हैं,
किंतु हर बार मौन रह जाना कमजोरी की निशानी है,
गलत में मौन तो आत्मा को जैसे बर्फ सा जमा देते हैं।