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Sachhidanand Maurya

Abstract

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Sachhidanand Maurya

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मोबाईल तुम्हारा सफर

मोबाईल तुम्हारा सफर

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टेलीफोन/पी सी ओ

पहले बात करने खातिर,

लाईन में धक्के खाते थे,

पूरी बात कहाँ हो पाती,

थोड़ा ही बतियाते थे।


नोकिया का आगमन

पूछ न प्यारे हमसे उस दौर के,

आए मोबाईल की बात,

वो तो शुरुआती दिन थे प्यारे,

जब था नोकिया का साथ।


मोबाइल के प्रति जिज्ञासा

कैसे चलता है यह तब,

यह एक होता राज था,

कल आज कल हमेशा,

मोबाईल हाथों का साज था।


पहला मोबाइल

बचत करने लगे थे पैसे,

सोचते रहते खरीदेंगे कैसे,

दूसरे से चलाने का पाठ लिया,

क्या दिन था नोकिया 1108 लिया।


बेसिक से स्मार्टफोन

फिर जैसे सबके दिन फिरते हैं,

वैसे फिरा प्यारे मोबाईल का,

फिर एल्बम बनाने आ पहुँचा,

इसमें कैमरा तुम्हारे स्माइल का।


स्मार्टफोन में प्रतिस्पर्धा

फिर अनेक गुणों वाले अवतार आए,

फिर इंटरनेट- गति से सारे संसार आए,

कभी एक के प्रति कितना कौतूहल था,

फिर आगे पीछे कैमरा चार चार आए।


ब्रांडेड स्मार्टफोन की चाहत

अब मोबाइल नहीं आदत है,

न पास तो पल नहीं राहत है,

एक सैमसंग पास है फिर भी,

एक नए एप्पल की चाहत है।


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