STORYMIRROR

Sachhidanand Maurya

Abstract

4  

Sachhidanand Maurya

Abstract

कुछ ऐसा ही ख्वाब सजाना तुम

कुछ ऐसा ही ख्वाब सजाना तुम

1 min
370


कुछ ऐसा ही ख़्वाब सजाना तुम,

कि मेरे हर ख्वाब में आना तुम।


तुम बिन ये जिस्म अंधेरा लगे ,

आके ऐ चांद इसे चमकाना तुम।


मन के फूल मुरझाए से लगते हैं,

ऐ गुलाब मेरे इसे महकाना तुम।


रंग बिरंगा चंचल दिल है तितली सा,

खींच ओर अपनी इसे चिपकाना तुम।


सुनने को बेताब हैं तेरे मीठे स्वर को,

आके रात चुपके कानों में बताना तुम।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract