फलसफा अजनबी का
फलसफा अजनबी का


जिंदगी का दस्तूर बड़ा विचित्र है मित्र,
अपने बन जाते अजनबी की तरह,
कभी दुश्मनों की तरह मिजाज इनका,
कभी मानो जिंदगी में खुशी की तरह।
एक अजनबी था वो जब तक न मिला था,
बन गया है अब तो साया की तरह,
क्या पता कब तक का साथ होगा उसका,
अभी गुम तो न होगा माया की तरह।
जितने पल वो रुका दिल से रुका था,
प्यार के वो पल भुलाए न गए,
न जाता वो जिंदगी खुशनुमा होती जरूर,
पल हसीन प्यार के फिर पाए न गए।