दर्द का अंत
दर्द का अंत
आधी रात क़ो अचानक आंख खुल जाती है
बरबस यूँ ही वे बरसने लगती है,
अतीत में गुजरे लम्हें ज़ब नींद में भी सताते है
सवाल कई मन क़ो मसोसकर रख देते हैं
मेरे साथ यह नाइंसाफी क्यों हुई ?
वफ़ा के बदले बेवफाई क्यों मिली ?
क्या उसका ईमान एकबार भी कांपा नहीं होगा ?
इतने झूठ बोलते वक़्त जुबा कभी तो थरथराई होगी ?
जीस समय में दुआओं में उसकी सलामती मांग रहा था,
उस समय कैसे वह किसी ओर के ख्वाबों में खोया होगा ?
रातो में बात करने के लिए मुझसे नींद का बहाना कर,
कैसे वह इत्मीनान से उससे बतियाया होगा ?
दिन में हर समय काम में व्यस्त हूँ कहकर मुझसे,
कैसे उसने उसे मिलने बुलाया होगा,
जिन बांहो क़ो मेरे नाम कर चुके ये वादा किया था,
उन्हीं दो बांहों क़ो कैसे किसीओर के गले में डाला होगा
रूह कांप जाती है मेरी यह सब सोचकर भी,
कैसे उसने यह सब छलावा किया होगा ?
सेंकड़ो सवाल मन में उठे थे ज़ब उसने अलविदा कहा था
एक भी जवाब दिये बिन वो चलते बने थे,
अनकहे सारे सवाल अब बिच्छु बन डंकते है रातभर
मन में चित्कार उठती है क्या गुनाह था मेरा ?
क्या इस दर्द का भी अब कभी अंत होगा ?
