STORYMIRROR

सोनी गुप्ता

Abstract Inspirational

5  

सोनी गुप्ता

Abstract Inspirational

पिंजरे में बंद परिंदे की व्यथा

पिंजरे में बंद परिंदे की व्यथा

1 min
444

खुलकर आज उड़ जाने दो आसमान तक और उड़ने दो

हवा से बातें कर उस नीले - नीले गगन को तो चूमने दो


इस पिंजरे की सलाखों को तोड़कर मैं ना उड़ पाऊंगी

पुलकित पंख टूट कर बिखर जाएंगे इनको फड़फड़ाने दो


निहारता रहता पिंजरे से ही कहीं दूर उस नीले गगन को

उन्मुक्त गगन का प्रेमी बनकर मुझे स्वछंद ही रहने दो


घरौंदा एक अपना मुझे बनाना है तिनको से सजाना है

ये पिंजरा ना भाता मुझको मुझे तिनकों का नीड़ बनाने दो


परतंत्रता से भली लगती है तुम भी तो स्वतंत्र रहते हो

हे मनुष्य जब तुम स्वतंत्र जीते मुझको भी स्वतंत्र रहने दो


पंख फैलाकर दूर आसमान को छूने की ख्वाहिश है मेरी

घुटता है पिंजरे में जी मेरा खुली हवा में सांस मुझे लेने दो


पंछी हूँ मन मेरा भी पंख फैलाकर दूर उड़ने को करता है

मुझे इस कैद से आजाद कर आजादी का स्वाद चखने दो


अपने साथियों को उड़ते हुए टकटकी लगाकर देखता उन्हें

मुझे भी अपने साथियों संग दूर उस आसमान में उड़ने दो


पंख दिए हैं तो इनको पिंजरे में ना जकड़ कर रखो

मंद हवा के झोंके संग इन कोमल पंखों को भी उड़ने दो। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract