हे राघव !
हे राघव !
हे राघव !
स्वर्ण मृग के पीछे
अब न जाओ !
दिव्य कुल दीप
अब घर लौट आओ !
हे श्रीप्रदा !
तुम भी राघव न हो जाओ !
स्वर्ण मृग के पीछे
अब न जाओ !
मनभावन रंगोलियों
आओ आँगन सजाओ !
हे रघुनंदन !
लेशमात्र पूँजी के लिए
वनवास न चुनो,
प्राण बेच कर
विषैले श्वास न चुनो !
दीप दीप्यमान हैं
प्रतीक्षारत पथ पर,
पुष्प मालाएं
बाँह फैलाए देहरी पर !
हे नर नारी !
स्वर्ण मृग के पीछे
अब न जाओ !
अब लौट आओ !
पर्व प्रकाश का,
हर्ष ओ उल्लास का,
प्रेम का, आस का
एक साथ मनाओ !!