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Kavita Sharma

Abstract

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Kavita Sharma

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दीप मेरे....

दीप मेरे....

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दीप मेरे तुम न बुझना

सदा यूं जलते तुम रहना

तुम जलोगे प्रकार फैलेगा चहुं ओर देखो

अंधेरे को चीर कर दूर निराशा करेगा


 मुझको पता है जलना तुम्हारा कठिन है कितना

खुद जलकर उजाला देना सभी को

अपनी व्यथा मुझसे यूं तुम कह ही देना

शब्दों में वर्णन हो सके कोशिश रहेगी

बस दीप मेरे तुम न बुझना

सदा यूं ही जलते तुम रहना


है अमावस की ये रात काली

तुम्हारी रोशनी से जगमगा सी जाती

काले मनों में उजाला तुमको है भरना

अज्ञान का आवरण तब हटेगा


ज्ञान का प्रकाश फैलेगा चहुं ओर जब

अंधेरे की कालिमा का तम हटेगा

ऐ दीप तुमसे से है निवेदन

भेद किसी से कभी तुम न करना

हर घर का आंगन प्रकाशित करना


बस दीप मेरे तुम न बुझना

सदा यूं ही जलते तुम रहना।


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