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Kavita Sharrma

Inspirational

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Kavita Sharrma

Inspirational

ठहराव...

ठहराव...

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 ऐ इंसान दिन से रात तक बस भाग रहे हो
 अपने से मिल पाने को भूलते जा रहे हो
 कब सुबह होती है कब शाम है होती
 बस तारिख़ बदल रही है जिंदगी तमाम हो रही 
ज़रा ठहरो देखो कभी उषा काल को
 पक्षियों का कलरव सूर्य की किरणों की स्वर्णिम आभा
 काम तो चलता ही रहेगा जिंदगी से मृत्यु पर्यन्त 
 पर जीना न मिल सकेगा फिर आएंगे न ये पल
इन छोटे छोटे पलों में कितनी खुशियां हैं छिपी 
कभी गौर करो महसूस कर पाओगे तभी 
ठहराव दो थोड़ा इस भागती हुई जिंदगी को 
बेशकीमती इस तोहफ़े का आनंद लो।


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