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Krishna Bansal

Inspirational

5  

Krishna Bansal

Inspirational

अपने जन्मदिन पर

अपने जन्मदिन पर

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इस संसार में 

आंखें खोले

बीत गए हैं 

आज आठ दशक 

और हो गया है

नौवें में प्रवेश।


जन्म से पहले क्या था 

मृत्यु के बाद क्या होगा 

यह तो मैं नहीं जानती और 

न जानने की बहुत जिज्ञासा है।


हां, बीते पलों को निहारना चाहूं 

एक पल में सभी घटनाएं 

ऐसी खड़ी हो जाती हैं 

जैसे अभी घट रही हों 

अभी और यहीं 

इसी पल।


चार वर्ष की अल्पायु में 

स्कूल की युनिफोर्म पहने

कंधे पर बस्ता लटकाए 

एक हाथ में गाचनी से 

लिपी पुती तख्ती

दूसरे हाथ में कलम दवात

ठुमक ठुमक 

झूम झूम 

चले हुए 

सखियों के संग।


समाज में बेटियों की स्थिति

को भांपते हुए 

माता-पिता ने निश्चय किया

लोगों की फब्तियों को दरकिनार कर

बेटियों को खूब पढ़ाएंगे।

 

हम बहनों के दिमाग में 

एक बात बिठा दी 

लड़कियों के लिए 

शिक्षा है ज़रूरी

आत्म निर्भर बनना 

और भी ज़्यादा ज़रूरी।


बस पढ़ना जीवन का प्रथम ध्येय बन गया।


स्कूल, कॉलेज, नौकरी,

शादी, बच्चे, घर गृहस्थी

अन्य लोगों की भांति 

सामान्य सा जीवन 

निभा दिया बखूबी जिम्मेदारी के साथ।


जीवन के ताने-बाने में बुने

उतार-चढ़ाव, आंधी तूफान, 

संघर्ष, तनाव 

सभी को झेला परन्तु

उनको कभी अपने ऊपर 

हावी नहीं होने दिया 

डटकर मुकाबला किया 

सदैव साकारात्मक रही

अंत में उभरकर जो व्यक्तित्व में 

निखार आया 

वह है मेरा वर्तमान।


ज्ञान की प्यास शुरू से ही रही

न जाने कितने लेखकों की पुस्तकों को आत्मसात किया मैंने 

ज्ञानी ध्यानी लोगों के प्रवचन सुने मैंने

जहां से भी कुछ 

सीखने को मिला, सीखा मैंने

वर्तमान में जीना, सीखा मैंने 

हर समस्या का समाधान 

समस्या में ही है, जाना मैंने 

कोई छल कपट नहीं 

कोई दिखावा नहीं 

कोई पछतावा नहीं

हां, सत्य की मार्गी हूं

किसी से उलझना पड़े 

तो गुरेज़ भी नहीं।


इन आठ दशकों में 

देखते देखते

टेक्नोलॉजी और विज्ञान ने बहुत उन्नति की है

मैंने भी कुछ हद तक 

नई टेक्नोलॉजी को अपना लिया है

समाज की सोच बदली है 

हर क्षेत्र में क्रांति आई है।

मैं भी इस क्रांति की पक्षधर हूं।


ऐसा नहीं कि सब अच्छा ही हुआ है 

पाश्चात्य की नकल कर

यह सच है

नैतिक मूल्यों में गिरावट आई है।


भारतीय संस्कृति को बचाना

हमारा फर्ज़ ही नहीं, धर्म भी है।


अंतिम उड़ान से पूर्व 

ईश्वर से प्रार्थना करना चाहूंगी 

सर्वे भवंतु सुखिनः 

सर्वे संतु निरामया 

सर्वे भद्राणि पश्यंतु 

मा कश्चित् दुख भाग् भवेत्।



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