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Krishna Bansal

Action Classics Inspirational

4  

Krishna Bansal

Action Classics Inspirational

ठूंठ -एक जीवन गाथा

ठूंठ -एक जीवन गाथा

2 mins
30


कभी मैं भी 

एक नन्हा सा पौधा था 

नरम, सुकोमल, सुंदर।

 

कई वर्ष पूर्व 

एक स्कूल की खंडहर दीवार में 

मेरा जन्म हुआ 

मैं पीपल प्रजाति का पौधा।


एक दिन प्रिंसिपल ने 

माली से कह कर

मुझे स्कूल के प्रांगण के

बीचोंबीच रोप दिया

खुले आसमान तले।

 

धूप और हवा की कोई कमी नहीं 

पानी से सींचा गया मैं 

दिन प्रतिदिन बढ़ने लगा। 


बच्चों को कूदते फांदते देख 

मैं भी हवा के साथ झूमता 

कभी कोई शरारती बच्चा 

मेरी टहनी तोड़ जाता 

कभी कोई पत्ते तोड़ फेंक देता 

एक चपरासी को मुझ पर तरस आया 


उसने मेरे लिए बांस का एक घेरुआ बनाया

उसे मेरे चारों ओर बांध दिया 

अब मैं बहुत प्रसन्न था 

मैं और तेजी से बढ़ने लगा 

पूरा सुरक्षित।


मुझ पर यौवन छाने लगा

मैं विशाल वृक्ष बन गया 

मजबूत 

ऊर्जा से ओत-प्रोत

देखने में अति सुंदर। 


मेरी टहनियों पर 

अब चिड़ियां तोते अनेक पक्षी

सब आश्रय लेने लगे

अपना घोंसला बनाने लगे

बच्चे मेरी छाया में बैठ पढ़ते 

नाश्ता करते 

टीचर लोग मेरा सहारा ले

फ्री पीरियड में गपशप लगाते 

उनकी निजी बातों का मैं गवाह बनता।


मेरी छाया ने आधा प्रांगण ढक लिया है 

मेरे तने का घेरा

दस फुट से ज़्यादा हो गया है।


पतझड़ में मेरे सारे पत्ते 

धाराशाई हो जाते

बसन्त में एक बार फिर

हर टहनी मुस्कुराने लगती

कोमल चमकीले पत्ते छा जाते।


गर्मी के दिनों में मेरे तले 

क्लासज़ भी लगती है 

मैं इतना फैल गया हूं कि 

मेरी शाखाएं कमरों की छत तक फैल गई हैं।


अब मैं पच्चीस वर्ष का हो गया हूं।


इस दौरान न जाने

कितने प्रिंसिपल आए और गए

कितने ही टीचर्स आए और गए।


एक दिन मैंने नए प्रिंसिपल को कहते सुना

पीपल की जड़ें बहुत फैल गई है 

स्कूल की नींव और दीवारों को खतरा है 

स्कूल बिल्डिंग पहले ही चरमरा रही है।

मैं अन्दर तक कांप गया

लगा, अंतिम समय आ गया है।


उस टीचर ने कहा 

पीपल को नहीं काटना चाहिए 

ऑक्सीजन का चौबीस घंटे का भंडार है

स्कूल की शान है यह वृक्ष

प्रांगण की शोभा है यह वृक्ष

हां, इसकी छंटाई करवा देते हैं।


जिसको राखे साईं

मार न सके कोई।

मेरी जान में जान आई।

कई वर्ष फिर निकल गए।

मैं अब पुराना व बूढ़ा होनें लगा था।


एक दिन आंधी चली 

तुफान, बारिश, ओले 

बेशुमार बरसे

इतनी तेज़ बारिश कि

जल थल एक हो गया 

मेरा जर्जर शरीर इस बार 


थपेड़े सहन नहीं कर पाया

एक कमरे की दीवार पर जा गिरा

पैंतालीस वर्ष पुराना मैं पीपल

ऐसे चरमरा गया जैसे 

उसमें जान प्राण ही न हों।


अगले दिन चार मजदूर आए

मेरी कंटनी छंटनी शुरु हुई 

दो दिन में ही 

एक हर भरा दरख़्त

ठूंठ बन कर रह गया हूं।


कभी सोचा न था कि 

एक दिन यह हश्र भी हो सकता है

पर यह कड़वी सच्चाई है जो

हर एक के साथ बीतनी है।


जीव जन्तु, पशु, मानव, वनस्पति 

हर एक के साथ।


इसी प्रांगण में 

मैं अभी भी विद्यमान हूं

हरे भरे सशक्त वृक्ष के रुप में नहीं 

एक ठूंठ के रुप में।


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