जीवन सफर
जीवन सफर
क्षण भंगूर सा जीवन है ये
पंछी जाने कब उड़ जाएँ
वक़्त पर हुकूमत ना चले किसी की
आज ही सब कुछ कर जाएँ ।।
प्रौढ़ अवस्था में आ चले हम
धर्म-कर्म कुछ कर जाएँ
आधा जीवन बीता यूँ ही
पता नहीं कल क्या घट जाए।।
धृति अपनी भरी ना अब तक
इच्छाओं का त्याग कर जाएँ
हिचकोले लेती लालसाओं का
जल्दी तर्पण कर आयें।।
शिथिल पड़ गये अंग भी अपने
कुछ तीर्थ यात्रा कर आएँ
साँसे भी ज्यादा बढ़ने लगी है
नई पीढ़ी पर ज्ञान न्यौछावर कर जाएँ।।
वृद्ध अवस्था आने वाली
ईश्वर मार्ग पर निकल जाएँ
शरीर भी जवाब दे रहा अपना
पुण्य कर्म कुछ कर जाएँ।।
अनुभव अपने बाँट के सबको
नई पीढ़ी के साथ चलें
वक़्त अनुसार खुद को ढाल सब
मित्र नई पीढ़ी के बन जाएँ ॥
