माननीय विश्वास लापालकार जी और मैं...
माननीय विश्वास लापालकार जी और मैं...


मेरी सुप्त प्रतिभाओं एवं
अव्यक्त संभावनाओं को
एक नई ऊर्जा मिली,
जब सौभाग्यवश
सन् २००३ के एक विशेष दिन को
अरूणाचल प्रदेश की राजधानी
ईटानगर में अवस्थित
JNK Public School में
कार्यरत होने के दौरान
विवेकानंद केंद्र, कन्याकुमारी के अंतर्गत
बेसरकारी विद्यालयों के शिक्षक-शिक्षिकाओं की कर्मोन्नति हेतु सफलतापूर्वक आयोजित की जानेवाली "TAPE 2003" कार्यक्रम में समन्वयक का महत्वपूर्ण दायित्व पालन करते हुए
एक हंसमुख, सरल, मृदुभाषी एवं आध्यात्मिक विचारधारा के धनी,
असाधारण कथाकार-कहानीकार, सुवक्ता, ज्ञानदीप्त व्यक्ति से
मेरा परिचय हुआ...
वो एक ऐतिहासिक पल था
मेरे जीवन में...
वो दिन और आज का दिन...!
मुझे आज भी याद है...
मैं 'पोडियम' से अपने समन्वयक का
महत्त्वपूर्ण दायित्व समाप्त करके
उतरने के बाद ही
मेरे कंधे पर हाथ रखकर
कुछ कदम चलते हुए
थोड़ी दूर एक कोने में जाकर
उन्होंने कहा था, "जयंत, तुम एक
तेजस्वी युवक हो...
प्रतिभावान हो एवं
संभावनाओं से भरपूर
उज्ज्वल जीवन हो...!
क्यों अपना वक्त यहाँ
बयूँ बरबाद कर रहे हो...?
वि.के.वि. लाईपुली, तिनसुकिया में मेरी सहधर्मिणी सुदीप्ता हैं,
तुम उनसे जाकर मिलो...
वि.के.वि. का द्वार तुम्हारे लिए
हमेशा खुला है...!!!"
उन्होंने बड़े आत्मविश्वास के साथ
ये बात कहा था...
मैं उस वक्त तो
वो बात भूल गया,
मगर अरूणाचल प्रदेश से
असम लौटकर
"The Little Angel, Dhekiajuli" में शामिल हो गया...
वो २००४-२००५ का समय था...
एक रोज़ मेरे पिताजी
श्री नरेंद्र कुमार तपादार जी,
[केंद्रीय सरकार में 'सेक्शन ऑफ़िसर' (Section Officer) के पद से सेवानिवृत्त] ने
विवेकानंद केंद्र शिक्षा प्रसार, तेजपुर
(अभी गुवाहाटी में स्थानांतरित) की नौकरी के विज्ञापन
छपी हुई अखबार का वो पन्ना
मेरे हाथों में थमाया,
जिसनें कि मेरा भाग्य रातोंरात
बदल दिया...
फिर वो ऐतिहासिक अवसर आया,
जब मैं
बड़ी उम्मीदें लेकर
साक्षात्कार देने पहुँचा...
आगे जो भी घटित हुआ,
वो मेरा भाग्योदय था...
फिर आया २००६...
किसी एक विशेष दिन
मैं फ़क्र से सर उठाकर
विवेकानंद केंद्र शिक्षा प्रसार विभाग, तेजपुर स्थित
कार्यालय में पहुँचा...
हाथ में
मिठाइयों से भरी पैकेट...
कार्यालय में जिनसे मिला,
वे 'अकादमिक समन्वयक'
श्री सुवन सेठ जी थे...
उन्होंने बड़े आत्मविश्वास सहित
मेरे हाथों में 'नियुक्ति पत्र' थमाया...
मेरे लिए सबसे बड़ी बात
ये थी कि उसमें
मेरे "गुरु"
माननीय विश्वास लापालकार जी के
बहुमूल्य हस्ताक्षर थे...!!!
मुझे आज भी याद है...
मैंने उनके हस्ताक्षर वाले
'नियुक्ति पत्र' को
अपने ललाट से लगाया
और कार्यालय से
बाहर निकलने से पहले
श्री सुवन सेठ जी के
चरणस्पर्श किया...
और अपने सेवाकार्य को
अपना ध्येय मानकर
पूरी निष्ठा एवं ईमानदारी से
अपना कर्तव्यपालन करने की
दिशा में अपना
पहला कदम बढ़ाया...
और आज तक
इसी ऐतिहासिक संगठन का
एक सूक्ष्म हिस्सा बनकर
स्वामी विवेकानंद जी के
प्रबुद्ध भारत की
गौरवशाली इतिहास का
साक्षी बना...!
ऐसा नहीं कि मुझे
अन्य आय के स्रोत नहीं मिले,
मैंने 'असम टेट' (Assam TET) 'LP'-'UP' दोनों में ही
सफलतापूर्वक उत्तीर्ण हुआ...
सबने मेरा मज़ाक उड़ाया था,
जब मैंने सपनों की
सरकारी विद्यालय की
उमदा नौकरी को भी
नकार दिया...
और विवेकानंद केंद्र से ही
जुड़ा रहा...!!!
सच तो ये है कि
मैंने अपनी
आय-व्यय की
परिभाषा ही बदल दी...
मुझे संघर्ष एवं संभावनाओं की असीमितता पर
आत्मविश्वास सहित
अपने कर्मयोग में
लीन होने में आज
एक असीम शांति मिलती है...
यही मेरी गुरुदक्षिणा है...!!!
गुरुजी, आपने मुझे
एक साधारण शिक्षक से
एक शिक्षक कार्यकर्ता में
रूपांतरित किया...
"मी आभारी आहे, गुरुजी...!!!"