राष्ट्र
राष्ट्र
जिनके दिल में राष्ट्र ध्वज की, छवि धूमिल दिखाई देती है
उनके अरमानों की होली अब नज़दीक दिखाई देती है
भगत, विवेकानंद भी रोए होंगे किसी सितारे में,
गुरुनानक के साहबजादों की रूह दुहाई देती है
क्यों आड़ ले रहें हो तुम उन भोले धरती के पूतों की
शर्मसार बलिदानी हो गई भारत मां के पूतों की
करते हो प्रहार निहत्थे कर्तव्यभान सिपाही पर,
कहां गई वो टोली अब ज्ञान बांटते दूतों की
गणतंत्र शब्द का अर्थ बदलकर भोली जनता को बरगलाते हो
देश द्रोहियों तुम अपनी पहचान सामने लाते हो
कागज़ के टुकड़ों की खातिर ईमान बेचकर बैठे हो,
अपने दुष्कर्मों कि स्याही से अन्नदाता पर दाग लगाते हो
लाल किले का दृश्य देखकर बाबा साहेब रोए होंगे
क्या इसी छवि की खातिर उन्होंने कड़वे घूंट पिए होंगे
संविधान में केवल अधिकारों की मांग नहीं लिखी,
राष्ट्र अखंडता और एकता के भी लेख दिए होंगे
लाल किले पर खाकी ने बापू की सीख निभाई थी
हाथ जोड़कर प्रहारों की चोटें सिर पर खाई थी
परिचय वो भी दे सकते थे गर्म लहू की ताकत का,
संविधान दिवस पर भारत मां की शान बचानी आई थी
सोने कि चिड़िया है इस पर दाग नहीं लगने वाला
आर्यभट्ट की गिनती से वो शून्य नहीं ढलने वाला
ब्रह्माण्ड में नक्षत्रों कि चाल हम ही ने बतलाई,
राम धरा पर दुष्टों का अभिमान नहीं टिकने वाला
गरल बहुत फैलाया तुमने फन वो अब कटने को है
उन दंशों की पीड़ाओं का दर्द मेरा घटने को है
झांसी ने अपनी ज्वाला से नई मशाल जलाई थी,
परदेशी पद चिह्न मेरे भारत से अब मिटने को है
घाव दिया जो लाल किले को वो घाव नहीं सिलने वाला
कुछ गिने चुने गद्दारों से मेरा देश नहीं हिलने वाला
कुर्बानी है याद हमें महाराणा और शिवाजी की,
परदेशी गीदड़ को अब वो ताज नहीं मिलने वाला।।