तन-मन से अन्नदाता के साथ हूँ, मैं श्रमिक सुत' बोल रहा हूँ। तन-मन से अन्नदाता के साथ हूँ, मैं श्रमिक सुत' बोल रहा हूँ।
पेंसिल ने लिखकर मिटाना सिखाया था, पेन ने ताे लिखकर काटना सिखाया था, पेंसिल ने लिखकर मिटाना सिखाया था, पेन ने ताे लिखकर काटना सिखाया था,
हमें रुकावटों के सीने को फाड़ सुगम रास्ते बना के आगे बढ़ना है ! हमें रुकावटों के सीने को फाड़ सुगम रास्ते बना के आगे बढ़ना है !
संविधान में केवल अधिकारों की मांग नहीं लिखी, राष्ट्र अखंडता और एकता के भी लेख दिए होंगे संविधान में केवल अधिकारों की मांग नहीं लिखी, राष्ट्र अखंडता और एकता के भी लेख द...
संघर्ष भी चाहे लाखों आये, तू कभी लड़खड़ाना न, संघर्ष भी चाहे लाखों आये, तू कभी लड़खड़ाना न,
कविता सिर्फ नदी की कल कल बहती धार नहीं है कविता उन आशंकित नदी के किनारों की व्यथा है कविता सिर्फ नदी की कल कल बहती धार नहीं है कविता उन आशंकित नदी के किनारो...