बचपन की वो पेंसिल
बचपन की वो पेंसिल
बचपन की वो पेंसिल बहुत प्यारी थी,
रबड़ से तो पूरी क्लास की यारी थी,
पेंसिल और रबड़ का कुछ पल का यारना था,
पेंसिल को पेन से हारना था,
पेंसिल ने लिखकर मिटाना सिखाया था,
पेन ने ताे लिखकर काटना सिखाया था,
जबतक बचपन की वो पेंसिल हमारी थी,
तबतक गलतियाँ मिटाई बहुत सारी थी,
पेन तो सोच समझ कर लिखना सिखाया था,
पेन ने अधिकारों के लिए लड़ना बताया था,
पेन ने ही तो हमें बचपन से बड़ा बनाया था,
