चूहे का इजहार
चूहे का इजहार
गया था चूहा इक दिन
खाने अनाज बाजार में,
मिली वहाँ उसको चुहिया
पड़ा वह उसके प्यार में,
देखी न कभी सुन्दरता ओर
किसी चूहिया के दीदार में,
बस एक वही मनभाई
उसे लाखों और हजार में,
खो आया सुख-चैन वह
अपने दिल की हार में,
खोया रहता अब तो वह
हरदम उसके विचार में,
आ चुका था बदलाव बहुत
अब,चूहे के व्यवहार में,
खाना-पीना भूल गया सब
वह चूहिया के खुमार में,
निकलते अब तो दिन-रैन
उसकी यादों के बुखार में,
सोचे हो कैसे सफल वह
अपने प्यार के इजहार में,
ठानी चूहे ने के नहला
दूँगा प्रेम की बोछार में,
चूहिया को इस बार मैं
होली के त्यौहार में,
ले पहुँचा दिल प्रेम से भरा
वह उसके लिए उपहार में,
बोला जाकर हम भी हैं तेरे
चाहने वालों की कतार में,
बोला नहीं मिलेगा मुझसा
चाहने वाला इस संसार में,
क्या बँधोगी तुम बताओ
मुझसे शादी के तार में?
इतराकर के बोली चूहिया
थी बेकरार मैं भी इंतजार में,
कर बैठी थी प्रेम मैं भी जब
देखा मैनें भी तुम्हें बाजार में ।