"आलिंगन"
"आलिंगन"
अपने व्याकुल हृदय का
करूँ प्रिय तुम्हें कैसे वर्णन,
प्रणय की अभिलाषाओं पर
करती श्वास-श्वास है नर्तन,
भरती प्रेम स्मृतियाँ तुम्हारी
रोम-रोम में मेरे स्पंदन,
तृप्त करो तुम तृष्णा मेरी
देकर आज मुझे आलिंगन,
मन-मंदिर के देव तुम्हीं हो
मैं बनी पुजारिन करती वंदन,
मुझमें सुलगती चिंगारी को
स्पर्श तुम्हारा करता कुंदन,
बीते पल-पल युग-युग जैसा
स्वप्न अधूरे करते क्रंदन,
तृप्त करो तुम तृष्णा मेरी
देकर आज मुझे आलिंगन।
होगी भावों की अभिव्यक्ति
महकेगा तन-मन ज्यूँ चंदन,
होगा आगमन ऋतुराज का
खिल उठेगा हृदय का कानन,
हो जाए सोने पर सुहागा
जो मिले तेरे होंठों का चुंबन,
तृप्त करो तुम तृष्णा मेरी
देकर आज मुझे आलिंगन।