निस्वार्थ पुष्प
निस्वार्थ पुष्प
क्या होगा जो पुष्प सभी
उतर आएँ बगावत पर ?
ये छोड़ दें करना गमन जो
नि:स्वार्थता की आदत पर,
क्या होगा जो रूठ कर ये
मुस्कुराना छोड़ दें?,जो
टूटकर ड़ाली से अपनी
ये खिलखिलाना छोड़ दें?
कोमल तन से जो *माल
को मधु पिलाना छोड़ दे,
क्या होगा अपनी जो ये
खुशबू लुटाना छोड़ दे?
सहकर सुईयों की मार जो
यें,पीड़ा से चीखे-चिल्लाएँ,
क्या होगा जो मानकर हार
ये हार में गुथ न पाएँ ?
अपने मधुबन से जुदाई
में जो स्वार्थी ये बन जाएँ,
अपने जीवन की आहूति
से,ये न जीवंत हमें बनाएँ?
इसलिए...,
सीखो पुष्पों से हरेक ही
परिस्तिथी में मुस्कुराना,
होकर के निस्वार्थ हर
किसी के काम ही आना।
यहाँ *माल(मक्खी)अर्थात्
मधुमक्खी को बोला गया है