"खौफ और सुकूँ"
"खौफ और सुकूँ"
हाँ बहुत खौफ है
घर से बाहर अभी
हर शख़्स कैद है
खुद के पिंजरे में सभी
जिसने की सियासत इस दौर में
वो शख़्स फिर कौन है ?
हाँ मगर है सन्नाटा अभी
आदमी मौन है
तुम्हें क्या चाहिए ?
अब तुम्हीं सोच लो !
हाँ अम्बर तेरा
या ज़मी नोच लो
खौफ और सुकूँ
दोनों मंज़र मिले
कांटें भी हैं
और फूल खिले
ये बदलाव भी
देखो ज़रा
दिल में दबे अहसास को
कुछ कह रहा
आसमां साफ़ है
चिड़िया चहचा रहीं
आवाज़ ये सकूं की
सब्ज़ महका रही
हवाएं सना सन बहे
नदियाँ भी पाक हैं
झरनें कल कल कहें
दिल को बहका रहे
मिट्टी में भी खुशबु है फिर
पंछी आज़ाद हैं
परदेसी लौटे है फिर
वो शजर आबाद हैं
कुदरत से फिर इन्साफ हो
खुदगर्ज़ी में न फिर,ये काम हो
रहने लायक रहे ये सरज़मीं
ये खुदाया तेरे बन्दे की,
नियत साफ़ हो !
चलो अब जो हुआ
अब जाने भी दो
हाँ बुरा वक़्त है
भूल जाने भी दो
आत्म शक्ति भरो
खुद पर विश्वास हो
आओ वादा करें
खुद से ही अभी
कुछ इरादा करें
खुद से ही अभी।
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